गहमर। द मिलियन फार्मर्स स्कूल किसान पाठशाला गहमर में चौथे और अंतिम दिन रवि की फसल उत्पादन तकनीकी एवं प्रजातियों का चयन, दलहनी फसलों को बढ़ावा देना, फसल सुरक्षा ,कीट एवं रोग प्रबंधन, जैविक रसायनों का प्रयोग ,बीज शोधन एवं नकली उर्वरकों की पहचान तथा कृषि विभाग की योजनाओं एवं देय सुविधाओं के बारे में विस्तृत चर्चा की गई।
इस पाठशाला में किसानों को संबोधित करते हुए सहायक विकास अधिकारी (क़ृषि) इंद्रेश कुमार वर्मा ने जैविक कीटनाशक के बारे में बिस्तार से प्रकाश डालते हुए बताया कि नीम एक प्राकृतिक पेस्टिसाइड है। जिसमें एजारेक्टिन एवं सैलानीन तत्व पाए जाते हैं। जो फसलों को कीड़ों द्वारा खाने से बचाता है तथा फसलों को सुरक्षा को प्रदान करता है। इसका तेल खली एवं पत्तियां पौध संरक्षण एवं कीट नियंत्रण में प्रयोग की जाती हैं।नीम का तेल धान ,चना ,अरहर, तिलहन तथा टमाटर में नुकसान पहुंचाने वाले गोलवर्म,माहु,सफ़ेद मक्खियां, फुदका,कटुआ सूड़ी तथा फसल बेधक सूड़ी पर प्रभावशाली है। खड़ी फसल में कीट नियंत्रण हेतु नीम का तेल 0.15 % ई सी की 2.5 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिन के अंतराल पर सायंकाल छिड़काव करना चाहिए।भूमि शोधन के लिए बूबेरिया बैसियाना 1.15% बायोपेस्टिसाइड की 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 60-70 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8 से 10 दिन छाया में रख देना चाहिए। ध्यान रहे कि इसकी नमी बनाए रखने के लिए समय-समय पर पानी डालते रहना चाहिए। बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक सहित भूमि जनित कीटों का नियंत्रण होता है तथा बीज शोधन ट्राइकोडरमा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम की बीज की दर से बीज को बोने से पूर्व शोधित करना चाहिए।
इस मौके पर प्रगतिशील किसान योगेंद्रनाथ सिंह,तारकेश्वर सिंह, रामविलास कुशवाहा, नचक उपाध्याय, आनंद गहमरी आदि लोग उपस्थित रहे।