गहमर(गाजीपुर)। हिंदी जासूसी उपन्यास के भारत के प्रथम लेखक गोपाल राम गहमरी की स्मृति में दो दिवसीय साहित्यकार सम्मेलन एवं सम्मान समारोह के प्रथम दिन रात्रि में एक सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें देश भर से आये कवि और कवियित्रियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को देर रात तक बांधे रखा।
इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व पर्यटन मंत्री प्रतिनिधि मन्नू सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि जब जब देश की राजनीति लड़खड़ाई है तो साहित्यकारों ने आगे बढ़कर दिशा निर्देशन का कार्य किया है। ग्रामीण अंचल में इस तरह का साहित्यिक आयोजन कराने वाले लोग बधाई के पात्र हैं।
स्थानीय गांव के इंटर कॉलेज के मैदान में दो दिवसीय साहित्यकार सम्मेलन एवं सम्मान समारोह की दूसरे चरण में शनिवार की रात एक सरस का भी गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आगाज बक्सर बिहार के डॉ उमेश कुमार पाठक रवि की वाणी वंदना – तोहरे दुअरिया भाइनी ठाढ़ मोरी शारदा मइया से हुआ। जिंदगी के दर्द को उकेरते हुए दिल्ली से पधारे रविंद्र कुमार जुगरान ने कहा की -ऐ सुमन मुरझा नहीं तू मुस्कुराना सीख ले, संग कांटे है तो क्या तू गुनगुनाना सीख ले। नालंदा बिहार से पधारे मगही के कवि प्रभात वर्मा की रचना हे तोरे नाम के पाती हर तरफ में हो तोहरे नाम, चहक चहक हे पंछी मह मह महक हे गुलाब को श्रोताओं ने काफी सराहा। आज के सशक्त हस्ताक्षर हेमंत उपाध्याय की ओजस्वी रचना- तिरंगे में लिपट कर देख तेरा यह लाल आया है,जिसे नालायक कहती थी वतन के काम आया है पर लोगों ने खूब शाबाशी दी। पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण पर उन्नाव के संतोष कुमार बाजपेई की कविता- हरा भरा यदि देश रहेगा, शेष न कोई क्लेश रहेगा। विश्व पटल के मानचित्र में, भारत देश विशेष रहेगा। सीधी मध्य प्रदेश के कवि कमलापति गौतम कमल ने कविता को परिभाषित करते हुए कहा की- मेरे प्रेम के प्रसून की पराग है कविता, निज अंतरात्मा की आवाज है कविता। जीवन के चाहतों का सब हिसाब है कविता, फिर भी किसी के प्यार की मोहताज है। रीता जय हिंद हाथरसी ने उत्कृष्ट व्यंग्य से मंच को ऊंचाई प्रदान की साथ ही उनकी व्यंग्य कविताओं की पुस्तक “गिफ्टम शरणम गच्छामि” का विमोचन भी मंच से किया गया। इसके अलावा रविंद्र शाहाबादी, सीतादेवी राठी, सनी कुमारी आदि रचनाकारों ने अपनी कविताओं से मंच को ऊंचाई प्रदान की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मिथिलेश गहमरी ने अपनी रचना- जिस दिए से न रोशन हो इंसानियत, है ये लाजिम कि उसको बुझा दीजिए। होलिया अब लहू की बहुत हो चुकी, है जरूरत दिलों को मिला दीजिए से प्रथम दिन के कार्यक्रम का समापन हुआ। अंत में कार्यक्रम के आयोजक अखंड गहमरी ने सभी आगंतुक कवियों का धन्यवाद ज्ञापन किया।