वो लोग ना जाने कौन थे।
जो खंजर लिये पिछे थे खड़े।
जानता था, शायद अपने थे मेरे ।
जो खंजर लिये पिछे थे खड़े।
मैं, समझ ना सका आईना उनका ,
वो लोग ना जाने कौन थे।
यह समाज हैं उन गद्दारों का ,
यहाँ पग- पग पैर संभाल के चल।
वो लोग ना जाने कौन थे।
जो खंजर लिये पिछे थे खड़े।
वास्तव…