गाजीपुर। गौरैया का मानव जीवन से गहरा लगाव है तभी तो इसको शायद अंग्रेजी में “हाउस स्पैरो” कहा गया है। क्योंकि यह हमारे घरों और हमारे परिवेश से इसका बहुत लगाव है। कहीं न कहीं हमारे परिवेश में कुछ ऐसे बदलाव हो रहें हैं जो गौरैया के लिए घातक होते जा रहा है और हमारे परिवेश से गौरैया घटते जा रही है।
यदि यह हमारे बीच से विलुप्त हो जाएगी तो हमारे पारिस्थितिकी तंत्र की एक कड़ी खत्म हो जायेगी जिसका परिणाम बहुत ही भयावह हो सकता है। इसीलिए इसकी दिनों-दिन घटती जनसंख्या सबके लिए चिंता की विषय बन गयी तथा 20 मार्च 2010 को विश्व गौरैया दिवस के रूप में घोषित कर दिया गया ताकि पूरे वैश्विक स्तर पर इसके लिए प्रयास किया जाय। आधुनिक जीवन शैली गौरैया को सामान्य रूप से रहने के लिए बाधा बन गए। पेड़ों की अन्धाधुन्ध कटाई, खेतों में कृषि रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग, टेलीफोन टावरों से निकली तरंगें, घरों में सीसे की खिड़कियाँ इनके जीवन के प्रतिकूल हैं। यह कहना है श्री रमेश सिंह यादव, अध्यापक व भूतपर्व शोधार्थी व सीनियर रिसर्च फेलो (आई सी ए आर-एन पी आई बी), कीट व कृषि जन्तु विज्ञान विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी का जो गौरैया बचाने का मुहिम इस क्षेत्र में पिछले कई वर्षों से कर रहे हैं। श्री यादव ने बताया कि इस वर्ष विश्व गौरैया दिवस मनाने में कोरोना वायरस के चलते बहुत बाधा आ रही है। इसीलिए मैंने संकल्प किया कि इस साल कोरोना से बचाव के बारे में लिखा गौरैया का कृत्रिम घोसला बाँटा है और साथ ही साथ कोरोनो के प्रति भी जागरूक किया। जनहित को ध्यान में रखते हुए ज्यादा पब्लिक के बीच न जाते हुए गौरैया का कृत्रिम घोसला डॉ आर. पी. सिंह, प्रगति होम्यो, ज़मानियाँ और एक घोसला कादिर अंसारी, रोहणा को दिया गया।