ग़ाज़ीपुर। कोरोना संकट के इस दौर में हल्की-फुल्की खांसी और गले में खराश को लेकर बहुत घबराने की जरूरत नहीं है । मौसम में बदलाव और ठंडा-गर्म खाने-पीने से भी इस तरह की समस्या हो सकती है। इसके लिए अस्पताल जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसकी दवा तो आपकी रसोई (किचेन) में ही मौजूद है, बस जरूरत उसे जानने और दूसरों को समझाने की है ।
आयुर्वेद के इसी ज्ञान से खुद को सुरक्षित रखने के साथ दूसरों को भी सुरक्षित रखा जा सकता है । राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की आयुष इकाई के महाप्रबंधक डॉ रामजी वर्मा का कहना है कि सूखी खांसी व गले में खराश को दूर करने में आयुष का घरेलू उपचार बहुत ही कारगर है । ताजे पुदीने के पत्ते और काला जीरा को पानी में उबालकर दिन में एक से दो बार भाप लेने से इस तरह की समस्या से राहत मिल सकती है । इसके अलावा लौंग के पाउडर को मिश्री/शहद के साथ मिलाकर दिन में दो से तीन बार सेवन करने से इस तरह की समस्या दूर हो सकती है । यदि इसके बाद भी दिक्कत ठीक नहीं होती है तभी चिकित्सक की सलाह लें । जानकारी के अभाव में लोग इसके लिए चिकित्सक की सलाह लिए बगैर भी मेडिकल स्टोर से कुछ दवाएं खरीदकर आजमाने लगते हैं, जो कि बहुत ही नुकसानदेह साबित हो सकती है ।
क्षेत्रीय आयुर्वेद एवं यूनानी अधिकारी डॉ आनन्द विद्यार्थी का कहना है कि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के एक से एक नुस्खे आयुर्वेद में मौजूद हैं, जिसको आजमाकर हम कोरोना ही नहीं अन्य संक्रामक बीमारियों को भी अपने से दूर कर सकते हैं, इन औषधियों का कोई साइड इफेक्ट भी नहीं हैं, जैसे – ताजी गिलोय (गुडूची या अमृता) का तना (4 से 6 इंच लंबा), 15 तुलसी के पत्ते, सोंठ, काली मिर्च, दालचीनी के क्वाथ (काढ़े) के साथ नींबू व गुड़ अत्यंत लाभकारी है। साथ ही भोजन में हल्दी, धनिया, जीरा, अदरक, काली मिर्च और लहसुन का नियमित प्रयोग भी इसमें बहुत ही फायदेमंद साबित होगा । इसके अलावा दूध में हल्दी मिलाकर कर पीने से भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है । साथ मे प्रातः योग (कपालभांति, भ्रस्तिका एवं अनुलोम-विलोम) और प्राणायाम का भी अभ्यास किया जाना चाहिए। यह कोरोना का काल अभी लंबा चलने वाला है, ऐसे में बदली परिस्थितियों में कोरोना से बचाव के निर्देशों का सम्यक पालन करते हुए व आयुर्वेदिक औषधियों को आजमाकर स्वस्थ रह सकते हैं, क्योंकि अभी अस्पताल और चिकित्सक कोविड-19 या कोरोना मरीजों की जाँच और देखरेख में व्यस्त हैं । इसलिए अस्पतालों में अनावश्यक दबाव बढ़ाने से बचें और सुरक्षित रहें ।