जमानियां। समय को धैर्य से काटना भी एक कला है जो हर जीवधारी में अपेक्षित है।तब जब समय विपरीत हो तो यह चिंतन और प्रबल हो जाता है।
कोरोना वाइरस की भयावहता के बीच इसके कुछ तथ्य और कथ्य पर मैं अपनी बात रखूं इससे पहले मैं इसके सामान्य लक्षणों की चर्चा करूं तो इसमें रोगी को बुखार, खांसी और सांस लेने में तकलीफ के साथ थकान, हाथ पैर में दर्द, शरीर में कपकपी या उल्टी आना आदि हो सकते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि कोई टीका व समुचित दवा विकसित न होने के कारण बचाव के उपाय ही हमें सुरक्षित करते हैं और वे हैं बार बार साबुन पानी से लगभग चालीस सेकेंड हाथ धुलने, घर से बाहर न जाएं यदि बहुत आवश्यक हो और जाना ही पड़े तो मास्क का अनिवार्य प्रयोग करें और लगभग एक मीटर की दूरी एक व्यक्ति से दूसरे की बीच में रखें और हां हमें अपनी इम्यूनिटी को मजबूत रखना होगा तो हम स्वयं तो कोरोना से बचेंगे ही अपने समाज को भी सुरक्षित कर पाएंगे।
उक्त बातें हिंदू स्नातकोत्तर महाविद्यालय जमानियां,गाजीपुर के सेवानिवृत्त प्राचार्य डॉ.अनिल कुमार सिंह ने महाविद्यालय राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा शुरू की गई अनूठी पहल वरिष्ठ जनों के अनुभवों से सीखें कार्यक्रम के तहत वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी डॉ.अखिलेश कुमार शर्मा शास्त्री से सचल भाष पर कहीं। कार्यक्रम अधिकारी के प्रश्न “कोविड 19 पूर्व महामारियों से इस महामारी को आप किस रूप में देखते हैं ” के उत्तर में डॉ.सिंह ने कहा कि जैसा कि मैंने पूर्व में भी कहा कि यह महामारी भयावह इसलिए बनी हुई है कि अभी तक इसका कोई इलाज या टीका नहीं खोजा जा सका है लेकिन इसका सकारात्मक पक्ष यह भी है कि हमारा समाज जो आत्ममुग्ध सा हो गया था उसने अपने व्यवहार में आमूल परिवर्तन करते हुए मानवीय मूल्यों एवं सेवा भावना की मिशाल कायम की है। आज हम कल्पना नहीं कर सकते कि युद्धों और पूर्व की महामारियों से कितनी जाने गईं और कितनी मौतें हुईं उनकी कल्पना से असम्भव है। यह पहली बार आई महामारी नहीं है इसके पहले भी चेचक, प्लेग, हैजा, मलेरिया आदि महामारियों ने तांडव नृत्य किया है और तारीख गवाह है कि बहुत बड़ी आबादी काल का मुख ग्रास बन कर रह गई। वास्तव में यह बैक्टीरिया नहीं वायरस है जिस पर अभी काबू पना बाकी है। स्वयं निर्जीव होकर भी आज संपूर्ण मानव जाति पर कहर बरपा रहा इससे बचने की हर सलाह हमारे लिए महत्वपूर्ण है। अब एक नया दायित्व सरकार का भी उभरकर सामने आया है कि हमें गावों को समृद्ध करने की दिशा में काम करना होगा। भारत गांवों का देश है और बहुत बड़ी आबादी के रोटी, कपड़ा और मकान की मजबूत दीवार सा अनादि काल से मानव सभ्यता को संरक्षण प्रदान करता आया है लेकिन आंकड़ों बाजीगरी ने गावों को उपेक्षित सा कर रखा है ऐसे में अगर कोई ऐसी योजना बनाई जा सके कि ग्राम देवता को खुश किया जा सके तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि और देश की वास्तविक समृद्धि की नई कहानी लिखी जा सकती है। मेरे हिसाब से ग्रामीण विकास पर अवश्य सोचना शुरू करना चाहिए। लंबे समय तक परिश्रम करने पर ही हमारी छिनी हुई आर्थिक आजादी हमें मिल सकेगी। यह सिद्धान्त है कि अर्थव्यवस्था में हम मांग के अनुरूप पूर्ति करते हैं लेकिन आज पूंजीवाद बड़े स्वरूप में कारपोरेट सेक्टर पूर्ति के अनुरूप मांग जनरेट कर रहे हैं इससे स्थिति सुधरेगी नहीं बल्कि और बिगड़ेगी। मैं अपने लगभग 67वर्षीय जीवन के अनुभवों के आधार पर कह सकता हूं कि कभी कल्पना भी नहीं की गई थी कि कभी ट्रेन, प्लेन और यातायात के सारे साधन ठप पड़ जाएंगे। मेरा आप सभी से राष्ट्रीय सेवा योजना के इस विशिष्ट मंच के माध्यम से अनुरोध है कि इस महामारी के समय को धैर्य पूर्वक बिता लीजिए अपनी जान तो बचाइए ही, सगे संबंधियों और सामाजिक समरसता को भी जिंदा रखिए क्योंकि यह समाज नहीं रहा तो व्यक्ति की कल्पना बेमानी है।तमाम सामाजिक गतिविधियों को प्रिंट मीडिया एवं सोशल मीडिया से ज्ञात होता है कि उत्तर प्रदेश एनएसएस इस महामारी में देवदूत बनकर आया है इसके लिए मैं एनएसएस परिवार को साधुवाद देता हूं।