जमानियां। वरिष्ठ जनों के अनुभवों से सीखें कार्यक्रम के तहत आज हिंदू स्नातकोत्तर महाविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी डॉ.अरुण कुमार ने 84 वर्षीय वरिष्ठ नागरिक सियाराम विश्वकर्मा जी से महामारियों के संदर्भ में उनके अनुभव साझा करने के उद्देश्य से बात की।
विश्वकर्मा जी ने डॉक्टर कुमार को बताया कि सन 1962 में मेरे गांव पर हैजे की महामारी फैली थी जिसमें 10 ..12 लोग एक साथ मरे थे।इतने लोगों की एक साथ मौत से पूरे क्षेत्र में दहशत फैल गई। उस समय में जिस गांव में हैजा फैलता था क्षेत्रीय गांव जवार के लोगों का आना जाना उधर से नहीं होता था।आज की तरह अस्पताल नहीं होते थे डॉक्टर्स नहीं थे स्थानीय वैद्यों से जो कुछ दवादि मिल पाती थी वही लोग लेते थे। कुछ उसी प्रकार की स्थिति आज कोरोना महामारी के संकट की भी है।अगर इसे हम स्थानीय नजरिए से देखें तो कुछ है वैसी ही स्थिति आज के समय भी है लोग तब भी घर में कैद हो जाते थे आज भी। घर में कैद हो जाना ही इसकी एकमात्र दवा है क्योंकि वैश्विक स्तर पर अगर हम देखें तो कोई भी टीका या दवा अभी तक इसके लिए उपलब्ध नहीं है।ऐसे में लाक डाउन ही एकमात्र उपाय है।
मैं आजीवन योग से अपने को जोड़े रहा हूं इस नाते मैं आपके माध्यम से सभी से अपील करता हूं कि लोग सादा और सुपाच्य भोजन लें,खुश रहें सुबह उठकर दैनिक दिनचर्या से निवृत्त होकर प्राणायाम अवश्य करें इसमें सूर्य नमस्कार करें अनुलोम विलोम भस्त्रिका और भ्रामरी करें खुश रहें।वह समय भी जरूर आएगा जब हम करोना से मुक्त पाएंगे और हमारा जीवन पहले की तरह पुनः खुशहाल हो सकेगा।