जमानिया। राधा-माधव ट्रस्ट सब्बलपुर के प्रांगण में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण कथा महोत्सव में भागवताचार्य चंद्रेश महाराज ने कहा कि भगवान को देखने के लिए लौकिक चक्षु की आवश्यकता नहीं होती अपितु भगवान हृदय में ही अवस्थित होते हैं तो उनको देखने या अनुभव करने के लिए अंतरचक्षु अथवा ज्ञानचक्षु की आवश्यकता होती है।
जब एक बार हम उन्हें अपने हृदय देश में देख लें तो फिर पुत्र, पति, पिता अथवा किसी अन्य चर-अचर में भी भगवान की छवी दिखलाई पड़ रही है। ऐसा भाव करते हुए हमें जीवन व्यतीत करना चाहिए। यदि हम संसार के प्रत्येक चराचार जगत में भगवान को ही अनुभव करने लगेंगे तो फिर हमसे किसी के भी प्रति अपराध नहीं हो सकता। महादानी दैत्यराज बलि के प्रसंग की चर्चा करते हुए महाराज ने कहा कि गुरु का स्थान सर्वोपरि है लेकिन तभी तक जब तक वह धर्मानुकूल एवं परमात्मा के मिलन की आस में सहयोगी रहे , यदि गुरु भगवान की उपलब्धि अथवा सद्पात्र को दान देने में बाधक बन रहा हो तो उस गुरु को भी त्याग देना चाहिए।