कन्दवा चन्दौली। क्षेत्र के अमड़ा गांव स्थित प्राथमिक विद्यालय के प्रांगण में रविवार की रात गांव के युवकों द्वारा धनुष यज्ञ और परशुराम-लक्ष्मण संवाद का आकर्षक एवं मनोहारी मंचन किया गया। जिसमें भगवान राम द्वारा गुरु की भक्ति एवं भाई के प्रति मर्यादा का निर्वहन देख श्रद्धालु निहाल हो उठे। धनुष टूटते ही श्रद्धालुओं ने हर हर महादेव और जय श्रीराम के गगनभेदी नारे लगाए।
गौरतलब है कि अमड़ा गांव में 1946 से ही दीपावली के अगले दिन एक दिवसीय रामलीला का मंचन गांव के युवकों द्वारा होता चला आ रहा है। उसी क्रम में इस वर्ष भी रविवार की रात धनुष यज्ञ और परशुराम-लक्ष्मण संवाद का मंचन किया गया।लीला का शुभारंभ सीता स्वयंवर के साथ हुआ।दरबार में महाराज जनक,महर्षि विश्वामित्र के साथ राम अनुज लक्ष्मण के साथ विराजमान थे।स्वयंवर के दौरान बाणासुर आदि एक से बढ़कर एक महारथी, योद्धा और पराक्रमी राजा भगवान शिव के धनुष पिनाक को तोड़ना तो दूर हिला भी नहीं सके। राजा जनक के दरबार में कोई ऐसा नहीं बचा जिसने जोर आजमाइश न की हो।लेकिन शिव धनुष टस से मस नहीं हुआ। राजाओं का यह हाल देखकर राजा जनक व्याकुल होकर सभी राजाओं को कोसते हैं। पूरे मिथिला में उदासी छा जाती है।जनक की तीखी बातें सुनकर लक्ष्मण क्रोधित हो जाते हैं और कहते हैं कि यदि बड़े भाई की आज्ञा मिले तो मैं पूरे ब्रम्हांड को कंदुक की भांति उठाकर फेंक दूं। राम क्रोधित लक्ष्मण को शांत कराते हैं। गुरु विश्वामित्र की आज्ञा पाकर राम धनुष के पास जाते हैं और गुरु को प्रणाम करते हैं। चारो ओर देखते हुए राम जनक और सीता को देखते हैं और धनुष को प्रणाम कर उठा लेते हैं। प्रत्यंचा चढाते ही धनुष बीच से टूट जाती है। सीता हाथ में जयमाल लेकर राम की ओर बढ़ती हैं और उनके गले में जयमाल डाल देती हैं। चारो तरफ शंख और घड़ियाल बजने लगते हैं तथा जयकार होने लगती है। इसी क्षण परशुराम भयंकर गर्जना करते हुए आते हैं। उन्हें देखकर सभी राजा वहां से भाग खड़े होते हैं।शिव धनुष को खंडित देखकर परशुराम क्रोधित हो जाते हैं ।उसके बाद परशुराम लक्ष्मण संवाद होता हैै बाद में अपनी शंका दूर होने पर परशुराम उन्हें आशीर्वाद देकर वापस लौट जाते हैं। इस दौरान डॉ समर बहादुर सिंह, बलराम पाठक, अनिल सिंह, अंशुमान सिंह, मृत्युंजय चौरसिया, संजय सिंह, दिग्विजय, ऋषभ, आकाश आदि लोग मौजूद रहे।