सुशील कुमार की रिपोर्ट
मतसा(गाजीपुर)। अति प्राचीन स्वयंभू प्रकट झारखण्डे महादेव मंदिर भगीरथपुर के प्रांगण में आयोजित पंच दिवसीय रामचरितमानस पाक्षिक सत्संग बार्षिकोत्सव एवं महाशिवरात्रि महोत्सव के तीसरे दिन भागवताचार्य चंद्रेश महाराज ने कहा कि तपस्या में बहुत ही बल है। तपस्या का अर्थ है वह संकल्प जिसकी पूर्ति के लिए मनुष्य तन मन धन से एकनिष्ठ होकर उद्योगशील हो जाना। पौराणिक कथाओं में हम सब पढ़े और सुने हैं कि नर, मुनि, देव, गंधर्व, राक्षस, दैत्य और दानव इत्यादि किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हजारों वर्षों तक घोर तपस्या किये और अपने इष्ट से इच्छित वरदान पाए।
वर्तमान समय में भी देखा जाता है कि कृषक, मजदूर, व्यवसायी और विद्यार्थी भी जब अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए घोर तप करते हैं तो कामयाबी की मंजिल को प्राप्त करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि तप से पहले भी महानता मिली है, अब भी मिल रही है और आगे भविष्य में भी तप की महिमा अक्षुण्ण बनी रहेगी।
संत राघवाचार्य राहुल जी ने कहा कि भगवान भोलेनाथ के द्वारा जो कुछ भी कल्याण का काम भक्तों का होता है अथवा भोलेनाथ जिस किसी को भी वरदान देते हैं या अपनी पुरी काशी में मरने वालों को मोक्ष प्रदान करते हैं वह सब कुछ उन्हें राम नाम को अहर्निस जपते रहने के कारण और रामकथा में अगाध प्रेम के कारण प्राप्त हुआ है। भगवान भोलेनाथ ही नहीं अपितु हम साधारण जीव भी भगवान के नाम के सहारे लोक में यश कीर्ति और संपत्ति संतति तथा परलोक में भी सद्गति प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा संसार में देखा एवं सुना भी जाता है कि रामनाम के जापक को लोग कितना आदर और सम्मान प्रदान करते हैं परन्तु शर्त यह है कि साधक पूर्णरूपेण भगवान के नाम के आश्रय को ही पकड़े और किसी का आश्रय न गहे। आयोजन में बुच्चा यादव, विवेकानंद, राधेश्याम चौबे और सूर्य नाथ राय ने भी कथा अमृत पान कराया।