सुशील कुमार की रिपोर्ट
मलसा(गाजीपुर)। स्वयंभू झारखण्डे महादेव मंदिर भगीरथपुर में आयोजित रामचरितमानस पाक्षिक सत्संग का बार्षिकोत्सव सह महाशिवरात्रि महोत्सव में संत राघवाचार्य राहुल महाराज ने कहा कि भगवान की व्यवस्था से परे, प्रकृति की व्यवस्था से भी परे, संसार की , परिवार की, समाज की व्यवस्था से भी परे, जाति, कुल गोत्र, वर्ण और आश्रम की व्यवस्था से भी यदि कोई होता है तो वह है संत।
रामचरितमानस में भगवान राम ने माता शबरी से नवधा भक्ति की चर्चा करते हुए भी कि संसार के समस्त चराचर, जड़ चेतन में मुझे ही देखना और मुझसे भी अधिक संत को महत्व देना ,मेरी भक्ति का एक स्वरुप है ऐसा मानना चाहिए। महाराज ने आगे कहा कि संत के अनंत गुणों की चर्चा करना संभव तो नहीं है लेकिन क्षमा और सहनशीलता वह गुण है जिससे विभूषित कोई भी वह चाहे स्त्री हो या पुरुष हो संत की श्रेणी में ही आता है। सामर्थ्य होते हुए भी वशिष्ठ मुनि ने अपने सौ पुत्रों को मारने वाले विश्वामित्र का कभी अनभल नहीं चाहा, पांच सर्वगुण संपन्न पतियों के द्वारा संरक्षित द्रौपदी ने अपने पुत्रों की निर्ममता पूर्वक हत्या करने वाले अश्वत्थामा को क्षमा किया , यद्यपि वह वध करने लायक था। दूसरे को दुख में देखकर यदि कोई दुखी होता है तो समझना चाहिए कि उसके अंदर संतत्व है। दधिचि, जटायू,शिवि और ऐसे अनेक जिन्होंने संसार के कल्याण हेतु, दूसरे की रक्षा हेतु अपना प्राण तक न्यौछावर कर दिया था और भगवान ऐसे ही परोपकारियों को स्वयं से भी ऊपर मानते एवं महत्व देने की बात शबरी मैया से कर रहे हैं। आयोजन में भागवताचार्य चंद्रेश महाराज, बुच्चा यादव, कमलेश राय और राधेश्याम चौबे आदि मौजूद रहे।