गाजीपुर। बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में होलिका दहन मनाया जता है। होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। 28 मार्च को होलिका दहन व 29 मार्च को होली है। होलिका दहन के लिए प्रत्येक नगर व गाँवों में चिन्हित जगह पर लोग पुवाल आदि का होलिका बनाकर ले जाते है तथा विधि विधान से पूजा करने के बाद होलिका जलाई जाती है। रंगों का महापर्व होली की तैयारी होलिका दहल से पूर्व लोग कर लेते है। होली पर्व पर बाजारों में रौनक देखने को मिला वही कोरोना महामारी का भय भी लोगों में व्याप्त है। इस बार की होली पर विशेष संयोग बन रहा है। जिसकी वजह से इसका महत्व बढ़ गया है। इस बार होली के दिन ध्रुव योग बन रहा है जो 499 साल बाद आता है। इस दिन चंद्रमा कन्या राशि में होगा और मकर राशि में शनि और गुरु रहेंगे। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होली का त्योहार मनाया जाता है।
होलिका दहन व होली का मुहूर्त
आचार्य संतोष पाण्डेय के अनुसार होलिक दहन का मुहूर्त 28 मार्च 2021 फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि शाम को 6 बजकर 37 मिनट से रात 8 बजकर 56 मिनट तक है। यह मुहूर्त 2 घंटा 19 तक है। होली 28 मार्च 2021 को दोपहर 3 बजकर 27 मिनट से लेकर 29 मार्च 2021 को 12 बजकर 17 मिनट तक रहेगा।
होलिका दहन की पूजा- विधि
आचार्य संतोष पाण्डेय के अनुसार होलिका दहन से पहले पूजा करने का विशेष महत्व है। इस दिन सुबह- सुबह उठकर पूर्व या उत्तर दिशा में बैठकर पूजा करनी चाहिए। इसके लिए गाय के गोबर से प्रहलाद और होलिका की मूर्ति बनाएं। फिर रोली, अक्षत , फूल, हल्गी, मूठ, गेहूं की बालियां, होली पर बनने वाले चावलों को अर्पित करें। इसके साथ भगवान नरसिंह की पूजा करें। पूजा करने के बाद होलिका की परिक्रमा करनी चाहिए। इस दौरान गेहूं की बालियां, चना, चावल, नारियल आदि चीजे डालनी चाहिए। होलिका दहन का मंत्र ॐ होलिकाएं नमः का जाप करना चाहिए।
होलिका दहन का महत्व
होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक में मनाया जाता है। शास्त्रों में इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है। पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप का बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। हिरण्यकश्यप को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं थी। वह प्रहलाद को तरह- तरह की यातनाएं देता था। इसके बाद उसने अपनी बहन होलिका को भगवान विष्णु की भक्ति से विमुख करने का काम दिया जिसके पास आग में नहीं जलने का वरदान था। प्रहलाद को मारने के लिए होलिका उसे अपनी गोद में लेकर बैठी गई। लेकिन फलस्वरूप प्रहलाद अग्नि में जलने से बच जाता हैं और होलिका जल जाती हैं। इसके बाद से होलिका दहन की परंपरा शुरू हो गई. मान्यता है कि होलिका दहन की अग्नि में सभी नकारात्मक चीजें जल जाती है।