कोरोना महामारी के अंतराल में भारत के स्पेस टेक्नोलॉजी फील्ड से सुकूनदेह खबर आ रही है। जी हां! भारत में 350 से अधिक निजी अंतरिक्ष फर्मो की संख्या हो गई है। जो कि जापान ,रूस, चीन से काफी अधिक है। इसी संख्या के कारण भारत अब पूरे ही विश्व में पांचवे स्थान पर आ चुका है। ग्लोबल रिपोर्ट के हिस्से के रूप में एनालिसिस की गई 10000 विषम फर्मों में से जो कि 2025 तक स्पेस टेक्नोलॉजी अर्थव्यवस्था को 500 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने का अनुमान लगाया जा रहा है। जिनमें से 5500 अमेरिका में है, इसके बाद यूके, कनाडा और फिर जर्मनी में है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन में 228, फ्रांस में 269, और स्पेन में 206 इन सब की तुलना में भारत में 368 फर्मो के होने की पुष्टि की गई है।
इंडिया सेटेलाइट रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन, इसरो के चेयरमैन सिवन का कहना है कि स्पेस इंडस्ट्री से जुड़े बड़ी और छोटी दोनों तरह की फर्मो से सेटिस्फाइड रिजल्ट मिले हैं।
2020 के अंत की तुलना में इन-स्पेस (IN-SPACe) के प्रस्तावों की संख्या में भी लगभग 30 फीसदी की वृद्धि हुई है। स्पेसटेक एनालिटिक्स की रिपोर्ट ‘स्पेसटेक इंडस्ट्री 2021/क्यू2 लैंडस्केप ओवरव्यू’ के अनुसार, वैश्विक स्तर पर ज्यादातर कंपनियां (2,820) नेविगेशन और मैपिंग में हैं, इसके बाद 1,000 विनिर्माण फर्म, 718 स्पेस कम्युनिकेशन, रिमोट सेंसिंग (211), एरियल इमेजिंग (152), अंतरिक्ष यान विकास (80), अंतरिक्ष यात्रा (58), और अंतरिक्ष चिकित्सा (48) के क्षेत्र में काम रही हैं।
वैलेस मेरिनरिस इंटरनेशनल, जो रूस में अपने भागीदारों के माध्यम से वैश्विक अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करने में मदद करता है, के सीईओ जयकुमार का कहना है कि इसरो जिस मॉडल को परश्युरेंस कर रहा है अमेरिका में उसे बदलना चाहिए। उनका कहना है कि यदि उद्योग को विकसित करना है तो सेलर- कस्टमर रिलेटेड मॉडल नहीं हो सकता, यह पार्टनरशिपिंग रिलेटेड होना चाहिए।