ग़ाज़ीपुर। कुष्ठ रोग की रोकथाम व नियंत्रण के लिए मंगलवार को मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के सभागार में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू एच ओ) ने कार्यशाला का आयोजन किया। इस दौरान सभी ब्लॉक के एनएमए ( नान मेडिकल असिस्टेंट) , एन एमएस( नान मेडिकल सुपरवाइजर ) तथा प्रभारी चिकित्सा अधिकारी (एमओआईसी) को प्रशिक्षण डब्ल्यूएचओ के कंसल्टेंट डॉ निशांत द्वारा दिया गया। कार्यशाला में बताया गया कि किस तरह से यह बीमारी आमजन में फैलती है।
कुष्ठ रोग के नोडल अधिकारी डॉ. एस.डी. वर्मा ने बताया कि कुष्ठ रोग मायकोबैक्टीरियम लैप्री नामक जीवाणु के कारण होती है. इस बीमारी का असर मुख्य रूप से व्यक्ति के हाथ-पैर, त्वचा, आंख और नाक पर रेखाएं पड़ने लगती हैं। इसे ‘हान्सेंस डिसीज’ भी कहा जाता है| इस बीमारी के प्रति लोगों में जागरुकता के लिए ‘वर्ल्ड लेप्रोसी डे मनाया जाता है। कुष्ठ रोग अन्य फैलने वाले रोगों व संक्रमणों के मुकाबले काफी कम संक्रामक होता है। कुष्ठ रोग के सबसे मुख्य लक्षण हैं त्वचा पर घाव बनना और तंत्रिका प्रणाली में सनसनी में कमी होना।
डॉ. एस. डी. वर्मा ने बताया कि यह बीमारी बहुत धीमी रफ्तार से बढ़ने वाले बैक्टीरिया से फैलती है | इसलिए पूरी तरह इसके लक्षण सामने आने में कई बार 4 से 5 साल का समय भी लग जाता है। यह एक ऐसी बीमारी है जिस पर आज दुनिया के अधिकतर देश नियंत्रण कर चुके हैं, लेकिन केन्या जैसे कुछ देशों में आज भी लेप्रसी भयावह स्थिति में देखने को मिलती है। एक वक्त में यह दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारी मानी जाती थी। अब इस दिशा में चिकित्सा विज्ञान सक्रिय है और वैक्सीन हैं, जो शरीर को इससे बचाती हैं।
डॉ. वर्मा ने बताया कि यह बीमारी कोई छुआछूत की बीमारी नहीं है और न ही किसी के पाप का परिणाम, जैसा कि आम धारणा में है। इसका एड्स से भी कोई संबंध नहीं है। उन्होंने बताया कि विश्व का 60 फीसद मरीज केवल भारत में है और प्रतिवर्ष करीब 12000 मरीज भारत में बढ़ते हैं। इस बीमारी का इलाज संभव है यदि मरीज दवा को समय से खाता रहे।
कार्यशाला में एसीएमओ डॉ उमेश कुमार, डॉ डीपी सिन्हा, डॉ मनोज सिंह, डॉ आशीष राय डॉ अभिनव सिंह के साथ ही अन्य लोग मौजूद रहे।