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“अथर्वा मैं वही वन हूं” की रचना प्रक्रिया पर परिचर्चा का हुआ आयोजन

गाजीपुर। स्थानीय राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय 23 अक्टूबर 2021 को सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रोफेसर आनंद सिंह द्वारा अपनी पुस्तक “अथर्वा मैं वही वन हूं” की रचना प्रक्रिया पर एक परिचर्चा आयोजित की गई।

इस परिचर्चा की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्य प्रोफेसर डॉ सविता भारद्वाज ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में लोकनायक जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के पूर्व कुलपति प्रोफ़ेसर डॉ हरिकेश सिंह जी उपस्थिति रहे। कार्यक्रम की शुरुवात करते हुए डॉ निरंजन कुमार यादव ने कहा कि- आनंद सिंह के पास भारतीय ज्ञान परम्परा और संस्कृति का अद्भुत ज्ञान है। हिंदी कविता के समकाल में “अथर्वा मैं वही वन हूं” एक विलक्षण कृति है। जिसको लिखने में उन्हें 25 वर्ष का समय लगाया है। यह कृति सिर्फ़ एक रचना नहीं अपितु एक साधना है। जिसमें भारतीय संस्कृति, समाज एवं ज्ञान परम्परा के साथ गहन पर्यावरणीय चिंता मौजूद है।

प्रो आनन्द सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि – कविता मनुष्यता की मातृभाषा है। यह अकारण नहीं है कि सारे धर्मग्रंथ कविता के शैली में लिखे गए है। कविता तब अधिक प्रभावी हो जाती है जब वह संवेदनात्मक होने के साथ आलोचनात्मक भी हो। इसी क्रम में उन्होंने कहा कि मनुष्य ने अपनी विकास यात्रा में एक लंबी छलांग लगाई है । उसने तैरने से लेकर जंगल साफ कर खेत बनाने तक और एक छोटी सुई से हवाई जहाज-स्पेस शटल के निर्माण तक की यात्रा पूरी की है। प्रो आनन्द सिंह ने कहा कि खलील जिब्रान के महान कृति “द प्रॉफेट” से मैंने प्रेरणा ग्रहण कर अथर्व की रचना प्रश्नोत्तर विधा में की है। यह रचना लंबी कविता से और ज्यादा लंबी है इसलिए मैंने इसे महाकविता नाम दिया है। टाइटेनियम नामक ग्रह और ह्वेनसांग की कल्पना के कथानक पर ज्ञान मंजूषा की खोज में भटकते व्यक्तियों की प्रश्नाकुल जिज्ञासा को केंद्र में रखकर इस कृति की रचना की गई है। यह कविता भारतीय संस्कृति का प्रवाहमान आख्यान है।

इस अवसर पर प्रोफेसर हरिकेश सिंह ने कहा कि गाजीपुर जनपद अपने महान साहित्यकारों के कारण सुविख्यात रहा है और ‘आनंद’ उसी परंपरा के वाहक हैं। सुप्रसिद्ध कवि यशवीर सिंह यश में अपनी एक कविता गाकर कार्यक्रम को अलग ऊंचाई प्रदान की। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं प्राचार्य प्रोफेसर सविता भारद्वाज ने कहा की अथर्वा भारतीय षड्दर्शन परंपरा लोकायत और चार्वाक की यात्रा, बुद्ध, कबीर और गांधी की चिंतन परंपरा का उत्कर्ष है।

इसके पूर्व महाविद्यालय में छात्राओं और शिक्षकों के मध्य परस्पर संवाद के तहत ‘प्रेरिकी’ कार्यक्रम का आयोजन उपमुख्य शास्ता डॉ संगीता मौर्य के नेतृत्व में किया गया जिसके अंतर्गत नवागंतुक छात्राओं को महाविद्यालय के प्रवेश, परीक्षा, छात्रवृत्ति, कक्षा संचालन, अनुशासन एवं विभिन्न प्रकोष्ठों संबंधी महत्वपूर्ण निर्देश दिए गए। इस अवसर पर प्राचार्य डॉ सविता भारद्वाज की विशेष पहल पर छात्राओं को उनकी उपलब्धियों के लिए शिक्षकों द्वारा स्वर्ण पदक एवं सम्मान प्रदान करने की एक नई परंपरा की शुरुआत की गई। 2019-20 की कला वर्ग की टॉपर छात्रा विनीता चौधरी को डॉ सारिका सिंह द्वारा ‘श्रीयुत महेंद्र प्रताप सिंह स्वर्ण पदक’ तथा सुश्री शिवांगी को विज्ञान वर्ग में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने पर प्राचार्य डॉ सविता भारद्वाज द्वारा ‘श्री शिव मूरत पाठक स्वर्ण पदक’ तथा शादमानी को डॉ दीप्ति सिंह द्वारा प्रोफेसर अशोक चंद्र सिंह सांस्कृतिक उत्कृष्टता पदक प्रदान किया गया। इस अवसर पर उपस्थित अतिथिगण एवं दानवीर शिक्षकों ने इन छात्राओं को स्वर्ण पदक एवं प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। मुख्य अतिथि एवं आगंतुकों ने इस पहल की सराहना की । इस अवसर पर डॉ बी एन पांडेय , डॉ सत्येंद्र सिंह, डॉ उमाशंकर प्रसाद, डॉ संतन कुमार राम, डॉ विकास सिंह, मीडिया प्रभारी डॉ शिवकुमार आदि प्राध्यापकगण, बड़ी संख्या में छात्राएं, आमंत्रित अतिथि और हिंदी विभाग की सुधी छात्राएं एवं शोधार्थी उपस्थित रहे।