गाजीपुर। लोक आस्था का महापर्व छ्ठ पूजा 8 नवम्बर, सोमवार को नहाय-खाय के साथ शुरू होगा। 9 नवंबर को खरना, 10 नवंबर को सायंकालीन अर्घ्य और 11 नवंबर को प्रात: कालीन अर्घ्य दिया जाएगा। मान्यता है कि छठ पूजा के चार दिनों के दौरान सूर्य और छठी माता की पूजा करने वाले लोगों की हर मनोकामना पूरी होती है।
छ्ठ पूजा को लेकर क्षेत्र में तैयारी तेज हो गई है तथा बाजार फलो की दुकानों से सजने लगे है।
रविवार की सुबह से ही बाजार में काफी भीड़-भाड़ रही तथा लोग सूप, दवरी व जरूरत के सामान खरीदते हुए नजर आये। बाजार में सड़क पटरी पर फल की दुकान लगाने के कारण जाम की स्थिति बनी रही। लोगों को काफी मसक्कत करना पड़ा।
पहला दिन-नहाय-खाय
छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय के साथ होती है. इसी दिन व्रती स्नान कर नए वस्त्र धारण करती हैं।
दूसरा दिन-खरना
छठ पर्व का दूसरा दिन खरना कहलाता है. पूरे दिन महिलाएं व्रत रखने के बाद शाम को भोजन करती हैं। खासतौर पर इस दिन गुड़ की खीर बनाई जाती है। इसके अलावा खीर को मिट्टी के चूल्हे पर बनाने की परंपरा है। खरना इस बार 9 नवंबर को पड़ रहा है।
तीसरा दिन-डूबते सूर्य को अर्घ्य
इस दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद तथा फल की टोकरी सजा कर व्रती इस दिन शाम के समय किसी तालाब या नदी के घाट पर जाती हैं। महिलाएं छठी मैया की पूजा-अर्चना करने के बाद पानी में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं।
चौथा दिन-प्रात:कालीन अर्घ्य
छठ पूजा के चौथे दिन महिलाएं व्रत का पारण करती हैं। इस दिन महिलाएं सुबह के समय घाट पर जाकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं। इसी के साथ छठ पूजा का समापन होता है।
नहाय-खाय का महत्व
छठ पूजा में भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व है। चार दिनों के महापर्व छठ की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन व्रती स्नान करके नए कपड़े धारण करती हैं और पूजा के बाद चना दाल, कद्दू की सब्जी और चावल को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करती हैं। व्रती के भोजन करने के बाद परिवार के बाकी सदस्य भोजन करते हैं। नहाय-खाय के दिन भोजन करने के बाद व्रती अगले दिन शाम को खरना पूजा करती हैं। इस पूजा में महिलाएं शाम के समय लकड़ी के चूल्हे पर गुड़ की खीर बनाकर उसे प्रसाद के तौर पर खाती हैं और इसी के साथ व्रती महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है। मान्यता है कि खरना पूजा के बाद ही घर में देवी षष्ठी (छठी मईया) का आगमन हो जाता है।