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सत्य, न्याय व धर्म के बिना समाज का भला नहीं हो सकता-संत दयाराम दास

मलसा(गाजीपुर)। क्षेत्र के रघुनाथपुर गांव में चल रहे मानव धर्म प्रसार प्रवर्तन समाज सेवी संस्था के 35 वा वार्षिक सम्मेलन में संत दयाराम दास ने कहा कि सत्य, न्याय व धर्म के बिना समाज का भला होने वाला नहीं है। जीव अगर सत्य का मार्ग अपनाकर चलें तो उसका जीवन सफल हो जाता है। सत्य ही भगवान है। मात्र सत्य का अगर जीव अपने जीवन में अपनाता रहा तो उसके साथ साथ समाज का भी भला हो जाएगा।

कथा में पंडित नीरज शास्त्री ने कहा कि जिसका लक्ष्य ही राम का चरण है ।उसे ही लक्ष्मण कहते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के द्वारा सीता का त्याग करने के बाद भी सीता ने जन्म जन्म तब उन्हें पाने का वर मांगा था कथा में पधारे कीर्तन सम्राट शिव जी महाराज ने कहा कि कर्म की गति बड़ी जटिल है और शाश्वत सत्य भी। हमारे द्वारा किए गए शुभाशुभ कर्मों का फल हमें भोगना ही पड़ता है। जीवन में जो कर्मफल हम भोग लेते हैं वह तो क्षीण हो जाता है। परन्तु जिस कर्म के फल को हम उसी जीवन में भोग नहीं पाते,वही कर्मफल संचित होकर अगले जन्म का कारण बन जाता है और प्रारब्ध के रुप में कर्मानुसार सात्विक, राजसी अथवा तामसिक रुप में हमें परिलक्षित होता है। इस कर्म बंधन में तुच्छ जीव से लेकर व्रह्मा, विष्णु, महेश तक को बधना ही पड़ता। कर्म एक बीज की तरह एक से दूसरा, दूसरे से तीसरा के सिद्धांत के अनुसार चलता ही रहता है।इस क्रम को रोकने के लिए जरूरी है कि हम परमात्मा के नाम रुपी तवे पर कर्मरुपी बीज को भून डालें, फिर जिस तरह भुने हुवे बीज का जमाव नहीं होता उसी तरह परमात्मा के नाम के साथ जुड़कर कर्म भी अगले जन्म का कारण नहीं बनता। कथा में पंडित चंदेश महाराज कुमारी आरती पाठक ने भी अपने विचार रखे कथा मंच का संचालन सुखपाल महाराज ने की।