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मनुष्य के भीतर दैवीय गुणों को जाग्रत करना ही देवोत्थान एकादशी व्रत का मुख्य संदेश-संजय राय

मतसा(गाजीपुर)। मां चंडी परिसर में आयोजित एक दिवसीय सत्संग में प्रबोधिनी एकादशी व्रत एवं तुलसी विवाह के ऊपर प्रकाश डालते हुए सत्संग समिति अध्यक्ष संजय राय ने कहा कि मनुष्य के भीतर दैवीय गुणों को जाग्रत करना ही देवोत्थान एकादशी व्रत का मुख्य संदेश है।

यह शास्त्रों की और हमारे ऋषियों मुनियों, मनीषियों की हमारे ऊपर बड़ी कृपा रही है कि जब -जब हमारे भीतर का देवत्व सुषुप्त अवस्था में चला जाता है तथा आसुरी वृत्तियाँ हमारे चित्त पर हावी होने लगती हैं तब -तब कोई न कोई पर्व या व्रत जरूर आ जाता है, जो हमारे देवत्व का बोध करा जाता है।
निराहार रहकर और आज रात्रि में भगवान विष्णु के स्वरूप का ध्यान रखने का विशेष महत्व है। निराहार से इंद्रियों की उत्तेजना को शांत करने तथा इन्द्रिय नियंत्रण करने का व्यावहारिक एवं प्रतीकात्मक महत्व तो है परन्तु वास्तविक उद्देश्य है निर्विकार रहना। सत्कर्म करने की भावना जग जाए, सत्य के मार्ग पर चलने का भाव जग जाए, यही वास्तविक जगना है। आज ही तुलसी एवं शालिग्राम भगवान के विवाह की भी पौराणिक काल से परम्परा का प्रचलन है और इसके पीछे तुलसी के पौधे में निहित औषधीय गुणों के संरक्षण का संदेश ही है। तुलसी को अपनाएं हम, रोग प्रत्येक हराएं हम, जीवन स्वस्थ बनाए हम, सोया देवत्व जगाएं हम। सत्संग में अशोक दास, रामराज और पारस प्रजापति और मंदिर पुजारी सत्येन्द्र तिवारी ने भी देवोत्थानी एकादशी एवं तुलसी विवाह की महत्ता पर प्रकाश डाला।