सुशील कुमार गुप्ता
मतसा (गाजीपुर)। ढढ़नी स्थित मां चंडी मंदिर परिसर में देव दिपावली, गुरु नानक जयंती के ऊपर आयोजित सत्संग में सत्संग समिति के अध्यक्ष संजय राय ने कहा कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को देव दिपावली के रूप में मनाने की सनातन परम्परा रही है।
पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि इसी दिन काशी में भगवान भोलेनाथ ने दिवाली मनाने की परंपरा शुरू की थी क्योंकि इसी दिन त्रिपुरासुर का भोलेनाथ ने बहुत समय तक संघर्ष के बध किया था। ऐसी मान्यता है कि आज की रात में स्वर्ग से सभी देवी देवता धरती पर आकर पवित्र नदियों के घाटों पर दीपोत्सव मनाते हैं। आज विष्णु भगवान और माँ लक्ष्मी के लिए विशेष उपासना करने का भी विधान है, क्योंकि एक पौराणिक कथन में मिलता है कि आज ही विष्णु भगवान ने मत्स्यावतार ग्रहण करके सृष्टि प्रलय से बहुत से जीवों को बचाने का कार्य किया था।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही सिख्ख धर्म के पहले गुरु नानक देव का भी अवतार धराधाम पर हुआ था। ऐसी कथा है कि एकबार नानक जी अरब प्रदेश की यात्रा के दौरान मक्का मदीना की तरफ अपने पांव कर के सो रहे थे कि वहां के लोगों ने उनको मक्का की तरफ पैर करके सोने से मना किया और बहुत भला बुरा बोला। तब नानक देव ने कहा कि जिधर मक्का मदीना न हो उधर ही आप लोग मेरा पैर घुमा दिजिए और जब वहां के लोगों ने उनका पांव दूसरी दिशा में किया तो एक आश्चर्यजनक दृश्य उपस्थित हों गया,सभी देखते हैं कि जिधर पांव किया गया ऊधर ही मक्का मदीना दिखने लगा और जैसे जैसे नाशक देव का पैर घुमाया गया ऊधर ही मक्का मदीना दिखने लगा तब लोगों ने समझा कि यह कोई साधारण नहीं अपितु परमात्मा के ही रूप कोई शक्ति नानक देव के रूप में अवतार लिया है। आज के दिन सिख्ख धर्मानुयायी प्रभात फेरी निकालकर और गुरूद्वारा में दीपोत्सव करके गुरु नानक जी की जयंती मनाते हैं। सत्संग में अशोक दास, दरोगा यादव, रामराज और पारस प्रजापति ने भी कार्तिक पूर्णिमा की महिमा के बिषय में पौराणिक कथाओं को सुनाया।