जमानिया(गाजीपुर)। सब्बलपुर रामलीला मैदान में धनुष यज्ञ मेला के आयोजन में त्रिदिवसीय श्रीरामकथा में गृहस्थ संत बुच्चा जी ने कहा कि देश व समाज में जब-जब संकट व अत्याचार, अनाचार, भ्रष्टाचार का बोल-बाला बढ़ जाता है तो धर्म, जप, तप, यज्ञ इत्यादि का हो पाना मुश्किल हो जाता है। तब- तब कोई न कोई संत राष्ट्ररक्षा, धर्म रक्षा के उद्देश्य से चिंतित होकर नौजवानों और समाज के लोगों को अन्याय के प्रति जागरूक किया करते है।
त्रेतायुग में जब राक्षसों का अत्याचार बहुत ज्यादा बढ़ गया फिर भी दशरथ जैसे नरेश जो कि देवासुर संग्राम में देवताओं की सहायता के लिए युद्ध किया करते थे, वह भी अपने परिवार और पुत्र की ममता में फंसकर अपने राष्ट्र के नागरिकों के हित संरक्षण में असफल होते हैं। ऐसे में एक संत विश्वामित्र ने देश समाज की चिंता किया और परिवार एवं पुत्र की मोह में फंसे राजा से उनके पुत्रों राम लक्ष्मण को यज्ञ रक्षा हेतु मांग कर ताड़का सुबाहु और मारीच आदि राक्षसों का बध कराकर राक्षसी प्रवृत्ति वालों को संदेश दिया कि संत केवल भजन कीर्तन ही नहीं अपितु जरुरत पड़ने पर राक्षस विध्वंस यज्ञ भी कर सकते हैं। इस प्रसंग का दूसरा तात्पर्य यह भी है कि जिस देश की सरहदों पर कठिन शीत ताप को सहते हुए सैनिक आतंकवादी तत्वों से लड़ते-लड़ते अपना प्राण देश के लिए न्योछावर करते हैं तो देश के शासक औपचारिक रूप से संवेदना व्यक्त कर तो देते हैं लेकिन किसी अपने को खोने की पीड़ा कैसी होती है, उन्हें महसूस नहीं होता। जब सांसद, विधायक, मंत्री और अन्यान्य उच्च पदस्थ राजनैतिक एवं प्रशासनिक अधिकारियों के अपने बच्चे या परिजन भी आतंकवादियों, नक्सलियों तथा अन्य उपद्रवी तत्वों के सामने लड़ने के लिए जाएंगे तब जाकर सही मायने में राक्षसी प्रवृत्ति के खिलाफ लड़ने वालों की कठिनाईयों को शासक वर्ग समझेगा। आयोजन में भागवताचार्य चंद्रेश महाराज, राधेश्याम चौबे, कैलाश यादव एवं विनोद श्रीवास्तव ने भी कथा अमृत पान कराया।