जमानिया(गाजीपुर)। दिव्य राधा-माधव ट्रस्ट सब्बलपुर के प्रांगण में नित्य आयोजित होने वाली कथा में सत्संग समिति अध्यक्ष संजय राय ने मोक्षदा एकादशी एवं गीता जयंती के उपलक्ष्य में गीता जी के महत्व पर कहा कि वर्तमान परिस्थितियों एवं अनुभव से यह महसूस होता है, कि श्रीमद्भगवद्गीता उतनी ही नवीनता एवं स्फूर्तिदायक अभी भी है जितना कि महाभारत युद्ध के समय में थी।
गीता के सन्देश का प्रभाव केवल दार्शनिक अथवा विद्वतचर्चा का बिषय नहीं है, अपितु आचार-विचार के क्षेत्र में भी मार्ग बतलाने वाला है।एक राष्ट्र तथा संस्कृति का पुनरुज्जीवन, पुनरुत्थान भी गीता के उपदेश में अन्तर्निहित है।
हमारे धर्मग्रंथों में एक अत्यंत तेजस्वी और निर्मल रत्न की भांति है श्रीमद्भगवद्गीतागीता । इसमें पिंड-ब्रह्माण्ड ज्ञानसहित आत्मविद्या के गूढ़ और पवित्र तत्वों को स्वयं परमात्मा ने एक जिज्ञासु और संशयात्मा अर्जुन को दिया और इसे सुनकर अर्जुन का मन संशय रहित हो गया और वह अपने कर्तव्य कर्म में प्रवृत्त हों गया।मनुष्यमात्र के पुरुषार्थ की, आध्यात्मिक पूर्णावस्था की पहचान करा देने वाला, भक्ति और ज्ञान का मेल कराके इन दोनों का शास्त्रोक्त व्यवहार के साथ संयोग करा देनेवाला और इसके द्वारा संसार से दुखित मनुष्य को शांति दे कर उसे निष्काम कर्तव्य के आचरण में लगाने वाला, गीता के समान बालबोध ग्रंथ, संस्कृत की कौन कहे, समस्त संसार के साहित्य में नहीं मिल सकता।