गाजीपुर। गर्भावस्था एक ऐसी अवस्था होती है जब गर्भवती गर्भ में पल रहे शिशु की यदि बेहतर देखभाल न करे तो शिशु कई रोगों से ग्रसित हो सकता है। ऐसे में गर्भवती को प्रसव से पूर्व कई जांच करानी जरूरी होती हैं, जिसमें मधुमेह (डायबिटीज) की जांच बहुत ही जरूरी है।
इस अवस्था मे यदि डायबिटीज का इलाज नहीं किया गया तो प्रसव के दौरान दिक्कत आ सकती है । इसके चलते आने वाले बच्चे को भी डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। इसीलिए गर्भवती का ओरल ग्लूकोज टरोल्वेंस टेस्ट (ओजीटीटी) कराना बहुत जरूरी है, जिससे पता चल सके की गर्भवती को डायबिटीज़ है या नहीं। यह कहना है सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र महमूदाबाद पर तैनात डॉ नीरज का।
डा. नीरज ने बताया कि गर्भावस्था में मधुमेह के लक्षण समझ मे नहीं आते, लेकिन संभावित लक्षणों में बार-बार पेशाब आना, अधिक भूख व प्यास लगना, घावों का जल्दी न भरना और थकान आदि हो सकते हैं। योग और सही खानपान से इस पर काबू पाया जा सकता है। इसकी अनदेखी करने से बच्चे को भी मधुमेह होने का खतरा बढ़ जाता है। इस अवस्था में यदि ग्लूकोज का स्तर शरीर में ठीक नहीं होता है तो इसकी वजह से बच्चे को जन्म से होने वाले शारीरिक विकास में समस्या आ सकती है।
महिलाओं में आने वाले समय में पूर्ण रूप से डायबिटिक होने की संभावना भी बढ़ जाती है। उन्होने बताया कि इसके उपचार से ज्यादा संतुलित आहार, प्रोटीन व आयरन से भरपूर आहार एवं टुकड़ों में भोजन करने से इस पर काबू पाया जा सकता है। इसके अलावा दवाओं से भी इससे निजात पाई जा सकती है। बशर्ते इसको समय पर जांच लिया जाए। डॉ नीरज ने बताया कि गर्भवस्था के दौरान ब्लड में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ना गिस्टिश्नल डायबिटीस मेलिटस कहलाता है, जिसकी वजह से बच्चों में माँ के गर्भ में और माँ को प्रसव के बाद डायबिटीक होने की संभावना बनी रहती है। इसलिए सभी प्रसव पूर्व जांच और देखभाल वाली महिलाओं में जीडीएम को जाँचना और उपचार करना बहुत आवश्यक है। जीडीएम जानने के लिए ओजीटी (ओरल ग्लूकोज टेस्ट) किया जाता है। टेस्ट से पूर्व, गर्भवती को 75 ग्राम ग्लूकोज पिलाया जाता है तथा दो घंटे तक बैठने एवं मनोरंजन के लिए बोला जाता है। दो घंटे बाद उनका ब्लड ग्लूकोज स्तर जांचा जाता है यदि वह स्तर 140 से ऊपर जाता है तो उस महिला को जीडीएम (गर्भकालीन मधुमेह ) की कैटेगरी में रखा जाता है।
डायबिटीज के मरीज चाहे गर्भवती हो या कोई और उसे चीनी, चावल व गेहूं का सेवन बंद कर देना चाहिए। ऐसे लोगों को चना आधारित डाइट का सेवन करना चाहिए, जिसमें 80 फीसदी चना, शेष बाजरा और जौ से बनी रोटी का सेवन करना चाहिए। उन्होने बताया कि डायबिटीज से ग्रसित गर्भवती को कम मीठे फल, दही, गाय के दूध का सेवन करना चाहिए। इसके साथ ही जितना भोजन तीन बार में करती हैं, उसे थोड़ा-थोड़ा करके छह बार में करें।
डायबिटीज से पीड़ित महिलाओं के लिए गर्भावस्था अधिक चुनौतीपूर्ण और जटिल होता है। यह रोग न सिर्फ गर्भवती की सेहत पर बुरा असर डालता है बल्कि गर्भ में पल रहे शिशु का विकास भी प्रभावित होता है। मधुमेह की वजह से बच्चे कई बीमारियों के शिकार हो सकते हैं। शिशु को भविष्य में टाइप 2 डायबिटीज का जोखिम भी हो सकता है।
मधुमेह की संभावना
परिवार में किसी को मधुमेह हुआ हो।
मोटापा
30 वर्ष से अधिक आयु में गर्भ धारण करना
पूर्व में मृत शिशु को जन्म दिया हो
लक्षण-
ज्यादा प्यास लगना
बार-बार पेशाब का आना
आँखों की रोशनी कम होना
कोई भी चोट या जख्म देरी से भरना
हाथों, पैरों और गुप्तांगों पर खुजली वाले जख्म
बार-बर फोड़े-फुंसियां निकलना
चक्कर आना
चिड़चिड़ापन