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वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र सिंह का लेख साहित्य का उद्देश्य शिक्षार्थियों को भाया

जमानियां(गाजीपुर)। स्टेशन बाजार स्थित हिंदू स्नातकोत्तर महाविद्यालय के शोध एवं स्नातकोत्तर हिंदी विभाग द्वारा आयोजित कार्यशाला में विषय की समझ एवं सामाजिक सरोकार पर केंद्रीय ग्राम सभा बरुइन निवासी वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र सिंह का प्रलेख़ साहित्य का उद्देश्य शिक्षार्थियों को खूब भाया।लेख को हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ अखिलेश कुमार शर्मा शास्त्री ने पढ़कर शिक्षार्थियों को सुनाया।जिसकी मुख्य बातें इस प्रकार रहीं।

साहित्य समाज का दर्पण है। दर्पण सत्य बोलता है। सत्य की व्याख्या साहित्य की निष्ठा है। साहित्य का सत्य ज्ञान पर नहीं, भाव पर अवलम्बित है। एक ज्ञान दूसरे को धकेल फेंकता है। नया आविष्कार पुराने आविष्कार को रद्द कर देता है, पर हृदय के भाव कभी पुराने नहीं होते।भाव ही साहित्य को अमरत्व प्रदान करता है। उसी से साहित्य का चिर सत्य प्रकट होता है। साहित्य सत्य में सौंदर्य की स्थापना करता है, तभी वह कला का रूप लेता है। साहित्य समाज का मात्र दर्पण नहीं है अपितु वह अतीत का ज्ञान, वर्तमान की चेतना, संवेदना और आगत सृष्टि की संभावनाओं का समुच्चय है जिसका उद्देश्य ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम’ की स्थापना है, ‘सर्वजन हिताय’ है, ‘सब कहँ हित होई’ है।
साहित्य में हित का भाव ही नहीं, सहित का भाव भी है। उसका एक मात्र लक्ष्य मनुष्य की बेहतरी है। साहित्य सेवा अहंकार से ओंकार की, अतिक्रमण से प्रतिक्रमण की , वासना से उपासना की, उपकरण से अंत:करण की, विभक्ति से भक्ति की तथा शव से शिव की यात्रा है।
साहित्य ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ की साधना है। साहित्य देश और समाज का जीवनदर्शन है। साहित्य जीवन के लिए है, जिसका उद्देश्य सृजन है, विध्वंस नहीं। साहित्य समाज का दर्पण और मार्गदर्शक है। रससिद्ध कवि बिहारीलाल का एक दोहा, जिसने राजा जयसिंह को दृष्टि देकर
सजग किया–
नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहिं काल।
अली कली ही सौं बंध्यो, आगे कौन हवाल।।
इस दोहे में कवि ने आईना दिखाने का काम तो किया ही है; साथ ही, द्वितीय पंक्ति में मार्गदर्शक के रूप में सचेत भी किया है। एक दूसरे दोहे में भी कवि ने राजा को दृष्टि दी है–
स्वारथ सुकृत न श्रम वृथा, देख विहंग बिचारि।
बाज पराए पानि परि,
तू पंछिनु न मारि।।
साहित्य जीवन के प्रत्येक अंग पर रोशनी डालता है, उसे निर्देशित करता है। साथ ही, भावी पीढ़ी को चलना सिखाता है। इसलिए साहित्य का उद्देश्य जीवन पथ को आलोकित करना है।इस सारगर्भित आलेख की सभी छात्र छात्राओं ने सराहना की।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नों को कम समय में एवं सही हल करने सम्बन्धी प्रतियोगिता में अतुल कुमार शर्मा प्रथम मोनिका भारती द्वितीय एवं विनीता श्रीवास्तव ने तृतीय स्थान प्राप्त किया।निर्णायक की भूमिका में अतिथि विद्वान वासुदेव सिंह यादव विभागीय शिक्षक लाल चंद पाल बिपिन कुमार ने सराहनीय भूमिका निभाई।कार्यशाला की सम्पन्नता की घोषणा महाविद्यालय के आई क्यू ए सी प्रभारी डॉ अरुण कुमार ने किया।