जमानिया(गाजीपुर)। भगीरथपुर में रामचरित मानस पाक्षिक सत्संग समिति के 47 वें बार्षिकोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित त्रिदिवसीय श्रीराम कथा के प्रथम दिन कथा सुनाते हुए भागवताचार्य चंद्रेश महाराज ने कहा कि तप, पुरुषार्थ अथवा साधना के बल पर साध्य की प्राप्ति तब तक नहीं हो सकती जब तक कि भगवान की कृपा न मिले।
विश्वामित्र जैसे परम ज्ञानी एवं साधक थे और उनका आश्रम शुभ स्थान पर स्थित था एवं यज्ञ भी लोककल्याण हेतु कर रहे थे परन्तु उसमें अधर्म मार्गी राक्षस मारीच, सुबाहु, ताड़का इत्यादि बाधा उत्पन्न कर देते थे। ब्रह्मा जैसे सृष्टि रचने की क्षमता प्राप्त विश्वामित्र भी अपने आप को राक्षसों के सामने असहाय महसूस करने लगे तब अयोध्या नरेश दशरथ के यहां पुत्र रुप अवतरित नरावतार ब्रह्म भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण को मांगने के लिए गए और अंततः जब भगवान की कृपा मिली तब यज्ञ पूर्ण हुआ और सुबाहु एवं ताड़का सहित उनके सहयोगी राक्षसों का अंत हुआ। महाराज जी ने आगे अहल्या उद्धार की कथा सुनाते हुए कहा कि अहल्या को देवराज इन्द्र और चंद्रमा ने क्षल करके अपराध किया था परन्तु पति का कोपभाजन अहल्या को बनना पड़ा और श्राप स्वरूप शिला बनना पड़ा। समाज में भी निंदा मिली, यद्यपि कि अपराधी इंद्र था।राम की महत्ता युगों युगों से इसीलिए समाज में है, क्योंकि जिसे पति और समाज ने अपराध न होने के बावजूद दण्डित किया था उसे भी रामजी ने पुनः समाज में सम्मान दिलवाया और पतिलोक में सम्मान पूर्वक स्थान दिलवाया। रामचरित मानस पाक्षिक बार्षिकोत्सव में बुच्चा जी, विनोद श्रीवास्तव शिवानंद तिवारी एवं क्षत्तिसगढ के संत ब्रह्मेश्वर जी ने भी कथा अमृत पान कराया।