जमानिया(गाजीपुर)। चैत्र नवरात्र रामनवमी की तिथि पर जीवपुर में आयोजित राम प्राकट्योत्सव में बोलते हुए बुच्चा जी रामजी के चरित्र पर प्रकाश डाला।
कहा कि राम राम जपने वाले को राम अपना प्रिय बना लें कोई ज़रूरी नहीं। एक पैर पर खड़ा रहकर बर्षो तपस्या करने वाले को हो सकता है राम नहीं मिलें। परन्तु किसी जीव की भूख प्यास को शान्त करने वाले, किसी दुखिया के दुख निवारण के लिए स्वयं कष्ट सहे और बदले में कुछ भी न चाहे तो उसे राम अवश्य मिलेंगे। रामचरित मानस में शबरी एवं गिद्धराज जटायु को रामजी ने जो गति प्रदान किया वह जन्म जन्म यतन साधना के बाद भी उन्हें नहीं मिलता।शबरी वनप्रदेश में जो पगडंडी थी। उस पर नित्य झाड़ू लगाती ताकि किसी तपस्वी के बैर में कंकड़ पत्थर चुभ न जाए कोई कांटा चुभ न जाए। सेवा के इस साधारण परन्तु निस्वार्थ भाव को रामजी ने पहचाना और उसकी झोपड़ी तक चलकर पहुंचे। जटायु जी भी एक स्त्री की रक्षा करने के लिए अपने प्राण को न्योछावर कर दिए, फलस्वरूप अपने हाथों से जटायु की अंतिम क्रिया सम्पन्न किया जबकि अपने निज पिता का नहीं कर पाते।
रामजी यदि केवल अयोध्या के राजा बनकर रह गए होते तो अन्य राजाओं की तरह इतिहास की किताब में ही उनकी गाथा छप कर रह जाती। रामजी जब पिताजी के आदेश को मानकर वनवासी, कोल -भील इत्यादि के दुख को उनके बीच ही रहकर समझते नहीं और उनको मान सम्मान नहीं देते तो शायद जन सामान्य के हृदय में स्थान नहीं बना पाते। राम के चरित्र के सभी पहलुओं पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि वह आदर्श पुत्र, भाई, पति, मित्र और राजा तो थे ही, एक शत्रु के रूप में भी उन्होंने अपने शत्रुओं के साथ सम्मान पूर्ण व्यवहार करने का कार्य किये। समारोह में राधेश्याम चौबे राजकुमार राय, कैलाश यादव, राजनाथ सिंह और भागवताचार्य चंद्रेश महाराज ने भी रामजी के चरित्र पर प्रकाश डाला। सम्मानित वक्तागण एवं श्रोताओं के प्रति आयोजक अशोक जी ने आभार व्यक्त किया।