जमानिया(गाजीपुर)। राधाकृष्ण मंदिर देवा बैरनपुर के प्रांगण में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर आयोजित छह दिवसीय संगीतमय रामकथा के तीसरे दिन कथा सुनाते हुए शिवजी महाराज ने कहा कि परमात्मा किसी तीर्थ, मंदिर, पहाड़ अथवा क्षीरसागर बैकुंठ में रहते है कि नहीं इसपर मतभेद हो सकता है। परन्तु भगवान भक्त के भाव में अनुराग में, श्रद्धा में अटूट विश्वास में निवास करते है इसमें तनिक भी संदेह नहीं हो सकता है।
भगवान किसी खंभे में थे या नहीं लेकिन प्रहलाद ने जब अपने पिता हिरण्यकश्यप से कह दिया कि इस खंभे में हमारे प्रभु हैं तो भक्त प्रह्लाद की बात को सत्य सिद्ध करने के लिए भगवान नृसिंह रूप में खंभे में से प्रकट हो गए। कथावाचक अखिलेश महाराज ने कथा क्रम में कहा कि रामजी का नीज यानी हमारे जीवन में स्थान कितना होना चाहिए यह लक्ष्मण जी के जीवन से समझना चाहिए। जनकपुर की धनुष यज्ञ की सभा में जब जनक जी ने यह कह दिया कि सब लोग उठकर अपने अपने घर को चले जाओ क्योंकि मैं जान गया हूं कि इस धरा पर कोई वीर पुरुष है ही नहीं,तब लक्ष्मण जी ने जनक ऐसा सम्बोधन करते हुए कहा था कि जिस सभा में रघुवंशी होते हैं वहां कोई ऐसी अनुचित बात नहीं कहता जैसी कि महाराज जनक ने कहा है। किसी ने कहा कि हे लक्ष्मण जी आप जनकजी को अपमानजनक सम्बोधन दे रहे हैं क्या यह उचित है तब लक्ष्मण जी ने जबाव दिया कि यदि मेरे पिता जी भी रामजी का अपमान करेंगे तो मैं उन्हें भी कठोर वचन सुना सकता हूं क्योंकि रामजी ही माता पिता, गुरु और सर्वस्व हैं हमारे।
धर्मनगरी काशी से पधारीं हुए प्रियंका पांडेय जी ने कहा परमात्मा का अवतरण क्यों होता है इस पर विशद चर्चा वेद पुराण उपनिषद् ग्रंथों में की गई है। राक्षसों के संहार के लिए भगवान का अवतार होता है यह सत्य है लेकिन पूर्ण सत्य नहीं है। अपने भक्तों के लिए,गऊ माता और सज्जनों की रक्षा के लिए भगवान का अवतार होता है यह सार्वभौमिक सत्य है।
संगीत के माध्यम से कथा में चार चांद लगाने में लालमोहर आर्य, उपेंद्र, शिवमंगल एवं अमरनाथ शर्मा ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।