गाजीपुर 25 अगस्त, 2022 (सू.वि)। जिलाधिकारी एम पी सिंह की अध्यक्षता में गोवंश में हो रही Lumpy Skin Disease (LSD) बीमारी के लक्षण, रोग संचरण, उपचार एव निवारण, रोग के समय क्या करे, क्या न करे के सम्बन्ध में बैठक जिला पंचायत सभागर में सम्पन्न हुआ। जिसमें मुख्य पशु चिकित्साधिकारी, पशु चिकित्साधिकारी व अन्य अधिकारीगण उपस्थित रहे।
जिलाधिकारी ने अवगत कराते हुए बताया गया कि यह एक विषाणुजनित रोग है, जिसका संक्रमण तीव्र गति से फैलता है। इसका प्रसार प्रभावित पशुओं से वेक्टर आदि के माध्यम से अन्य पशुओं में होता है। अभी तक यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लगभग 15 जिलो में ही पशु इस रोग प्रभावित है। लेकिन इस पर सतर्कता अनिवार्य है।
जिलाधिकारी ने गोवंशीय को अन्य जनपदो से लाने हेतु परिवहन पर प्रतिबन्धित करने के निर्देश दिये गये। इसके अतिरिक्त शासनादेश का ध्यानपूर्वक अवलोकन कर उसमें निर्दिष्ट गाइडलाइन के अनुसार कार्यवाही कर अनुपालन से अवगत कराने के भी निर्देश दिये। बीमारी की रोकथाम हेतु एहतियाती कदम जैसे-गोवंश आश्रय स्थलों मे विशेष साफ-सफाई एवं गोवंशो का टीकाकरण कराने के निर्देश दिये। जिला पंचायतराज अधिकारी को निर्देशित किया गया कि इसकी व्यापक जागरूकता अभियान चलाते हुए ग्राम सभाओ मे ग्राम प्रधानों, ग्रामीणो मे जनजागरूका एवं सार्वजनिक स्थानो, पंचायत भवनो पर जस्पा का जन जागरूकता फैलाने तथा प्रधानों के साथ इस सम्बन्ध में बैठके आयोजित कराने का निर्देश दिये।
बैठक में पशुओ में रोग के लक्ष्य, रोग संचरण, उपचार एवं निवारण, रोग पकोप के समय क्या करे, क्या न करे के बारे मे विस्तार पूर्वक बताया गया।
लम्पी स्किन डिजीज बीमारी के मुख्य लक्षण
पशुओं में हल्का बुखार होना, पूरे शरीर पर जगह-जगह नोड्यूल/गॉठों का उभरा हुआ दिखाई देना। बीमारी से ग्रसित पशुओं की मृत्यु दर अनुमान 01 से 5 प्रतिशत होना। बीमारी के रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये बीमारी से ग्रसित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना। पशुओं में बीमारी को फैलाने वाले घटकों की संख्या को रोकना अर्थात् पशुओं को मक्खी, चिचड़ी एवं मच्छरों के काटने से बचाना तथा पशुशाला की नियमित रूप से साफ-सफाई करना तथा डिसइन्फैक्शन (जैसे चूना आदि) का स्प्रे करना। संक्रमित स्थान की दिन में कई बार फोरमेलिन, ईथर, क्लोरोफार्म, एल्कोहल से सफाई करना।
संक्रमित पशुओं को खाने के लिये संतुलित आहार तथा हरा चारा दें। मृत पशुओं के शव को गहरे गडढ़े में दबाया जाना।
संक्रमण से बचाव हेतु घरेलू उपायः-
संक्रमण के बचाव हेतु घरेलु उपाय ऑवला, अश्वगन्धा, गिलोय एवं मुलेथी में से किसी एक को 20 ग्राम की मात्रा में गुड़ मिलाकर सुबह शाम लड्डू बनाकर खिलायें। संक्रमण रोकने के लिये पशु बाडे में गोबर के कण्डे में गूगुल, कपूर, नीम के सूखे पत्ते, लोहबान को डालकर सुबह शाम धुऑ करें।पशुओं के स्नान के लिये 25 लीटर पानी में एक मुठ्ठी नीम की पत्ती का पेस्ट एवं 100 ग्राम फिटकरी मिलाकर स्नान करायें तत्पश्चात सादे पानी से नहलायें।
संक्रमण होने के पश्चात देशी औषधि व्यवस्थाः-
एक मुठ्ठी नीम के पत्ते, एक मुठ्ठी तुलसी के पत्ते, लहसुन की कली 10 नग, लौंग 10 नग, काली मिर्च 10 नग, जीरा 15 ग्राम, हल्दी पाउडर 10 ग्राम, पान के पत्ते 05 नग, छोटे प्याज 02 नग पीसकर गुड़ में मिलाकर सुबह-शाम 10-14 दिन तक खिलायें।
खुर घाव के लिये देशी उपचारः-
एक मुठ्ठी नीम के पत्ते, एक मुठ्ठी तुलसी के पत्ते, एक मुठ्ठी मेंहदी के पत्ते, लहसुन की कली 10 नग, हल्दी पाउडर 10 ग्राम, नारीयल का तेल 500 मिली मिलाकर धीरे-धीरे पकाये तथा ठण्डा होने के बाद नीम की पत्ती पानी में उबालकर पानी से घाव साफ करने के बाद जख्म पर लगायें।
किसी भी पशुओं में बीमारी होने पर नजदीकी पशुचिकित्सालय पर सम्पर्क कर उपचार करायें, किसी भी दशा में बिना पशु चिकित्सक परामर्श के कोई उपचार स्वयं न करें।