गाजीपुर। वर्तमान परिवेश में लम्पी स्किन डिसीज किसानो के लिए एक नयी चुनौती के रूप में उभर रही है हैं। कृषि विज्ञान केंद्र पी जी कॉलेज के पशु चिकित्सा वैज्ञानिक डॉ डी पी श्रीवास्तव ने वताया कि यह मवेशियों में तेजी से फैलने वाला विषाणु जनित गाँठदार त्वचा रोग हैं।
भारत जिसके पास दुनिया के सबसे अधिक मवेशी हैं, यह बीमारी सिर्फ 16 महीनों के भीतर 15 राज्यों में फैल गई हैं। भारत के गोवंशों में गाँठदार त्वचा रोग या लम्बी स्किन डिजीज के संक्रमण के मामले देखने को मिले हैं। भारत में इस रोग के मामले पहली बार इतने बड़े स्तर पर दर्ज किये गए हैं।
रोग के लक्षण: इस रोग में बुखार, लार आंखों और नाक से श्राव, वजन घटना, दूध उत्पादन में गिरावट, पूरे शरीर पर कुछ या कई कठोर और दर्दनाक गाँठ के रूप में दिखाई देते हैं। त्वचा के घाव कई दिनों या महीनों तक बने रह सकते हैं। लिम्फ नोड्स सूज जाते हैं और कभी-कभी उदर और छाती के आसपास सूजन विकसित हो सकती है। इस बीमारी में शरीर पर गांठे बनने लगती है, यह गाठें दो से पाँच सेंटीमीटर व्यास की हो सकती है। इसके बाद धीरे-धीरे गांठे बढ़ी होने लगती है और फिर ये घाव में बदल जाती है। जो कि खासकर सिर, गर्दन, और जननांगों के आसपास देखी जा सकती है। कई बार गाय की मौत भी हो जाती है। इस रोग से प्रभावित मामलों में रोगी पशुओ मृत्यु दर 10ः से भी कम है।
संक्रमण का कारणः यह रोग मच्छरों, मक्खियों और जूँ के साथ पशुओं की लार तथा दूषित जल एवं भोजन के माध्यम से एक पशु से दूसरे पशुओं में फैलता है।मवेशियों या जंगली भैंसों में यह रोग लम्पी स्किन डिसीज वायरस के संक्रमण के कारण होता है। यह वायरस कैप्रिपॉक्स वायरस जीनस के भीतर तीन निकट संबंधी प्रजातियों में से एक है. इसमें अन्य दो प्रजातियाँ शीपपॉक्स वायरस और गोटपॉक्स वायरस हैं।
रोकथामः डॉ श्रीवास्तव ने वताया कि फार्म और परिसर में सख्त जैव सुरक्षा उपायों को अपनाएं। नए जानवरों को अलग रखा जाना चाहिए और त्वचा की गांठों और घावों की जांच की जानी चाहिए। प्रभावित क्षेत्र से जानवरों की आवाजाही से बचें। प्रभावित जानवर को चारा पानी और उपचार के साथ झुंड से अलग रखा जाना चाहिए. ऐसे जानवर को चरने वाले क्षेत्र में नहीं जाने देना चाहिए। उचित कीटनाशकों का उपयोग करके मच्छरों और मक्खियों के काटने पर नियंत्रण इसी तरह नियमित रूप से कीटध्मकर विकर्षक दवा का उपयोग करें। इसमें फार्म व उसके आस-पास के स्थानों पर साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
उपचारः लम्पी डिसीज वायरस का उपचार हेतु टीकाकरण व रोकथाम सबसे प्रभावी साधन है। त्वचा में अन्य संक्रमणों के फैलाव को रोकने के लिये उपचार गैरस्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीबायोटिक दवाओं के साथ किया जा सकता है। बीमार पशु के घाओं को एक प्रतिशत पौटेशियम परमेगनेट (लाल दवा) अथवा फिटकरी घोल से साफ कर एन्टीसेपटीक मरहम लगाकर संक्रमण को नियंत्रित कर सकते हैं।