जमानिया (गाजीपुर)। दुनिया भर में मशहूर पांचवीं हर्बल चिकित्सा पद्धति इलेक्ट्रो होम्योपैथी के जन्मदाता सर “काउंटर काउंट सीजर मैटी” का 214 वां जन्मदिन 11 जनवरी को राजेंद्र सिंह मौर्य (इलेक्ट्रो होम्योपैथ) के आवास ग्राम पाहसैयदराजा (देवरिया) में मनाया गया।
इस अवसर पर कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ.इकबाल अंसारी ने काउंट सीजर मैटी के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन किया। इस अवसर पर इलेक्ट्रो होम्योपैथिक चिकित्सकों की एक गोष्ठी रखी गई।
अपने वक्तव्य में अतिथि डॉ. शिवमूर्ति कुशवाहा ने बताया की आज दुनियाभर में हर्बल और अल्टरनेटिव मेडिसिन सिस्टम की मांग बढ़ रही है।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आज से लगभग 160 साल पहले इटली के डॉक्टर सर काउंट सीजर मैटी ने पौधों से ऐसी दवाइयां तैयार करने की पद्धति प्रचलित की जो दुनियाभर में मशहूर हो गई और आज कई देशों में लोगों के लिए वरदान बनी हुई है। काउंट सीजर मैटी का जन्म आज ही के दिन इटली में 11 जनवरी 1809 में वोल्गना नामक शहर में हुआ था। मैटी ने दर्शनशास्त्र और वनस्पति शास्त्र के साथ नैचुरल साइंस की पढ़ाई की थी। मैटी ने होम्योपैथी के अडवान्स फॉर्म पर काम किया और दुनिया को नई पद्धति दी जिसे आज क्रॉस स्पैजिरिक का नाम दिया गया है। मैटी ने कई बीमारियों के इलाज के लिए ऐसी दवाइयां विकसित की जो शुद्ध रूप से मात्र 114 पौधों से ही मात्र 32 दवाइयां बनाई थी। बाद में उनके अनुयायियों ने संशोधन करते हुए 64 औषधियों तक का निर्माण कर डाला।काफी समय तक मैटी इन दवाओं को लोगों की सेवा के लिए निःशुल्क ही दिया करते थे।मैटी का उद्देश्य था कि सभी को खुद का डॉक्टर बनाया जाए जिससे लोग कम से कम बीमार पड़ें और बीमारियों का इलाज भी खुद से प्राकृतिक तरीकों से कर सकें।
03अप्रैल 1896 को एपिनेन्स के मध्य में स्थित ला रोशेट्टा के शानदार महल में उनकी मृत्यु हो गई। अगर इस दुनिया में कुछ ईमानदार दिल हैं,तो उनकी याद को और सम्मान देने के लिए अभी भी काफी कुछ बाकी है।
भारत में इलेक्ट्रो होम्योपैथी को चाहने वाले कई ऐसे लोग थे जिन्होंने इलेक्ट्रो होमियोपैथी को बढ़ावा दिया उनमें थे बंगाल के डॉक्टर राधा माधव हलधर का नाम, जिन्होंने इलेक्ट्रो होमियो पैथी की दवाएं इटली से मंगाकर प्रैक्टिस किया करते थे उनके ही वजह से इलेक्ट्रो होमियोपैथी कोलकाता (बंगाल) बिहार, उड़ीसा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र क्षेत्र में जबरदस्त तरीके से फैलने लगी थी।डाक्टर टी.बनर्जी ने 1897 में मेडिकल इलेक्ट्रिक इंस्टीट्यूट नाम की संस्था कोलकाता में स्थापित की यह भारत की पहली शिक्षण संस्था थी। इसके बाद दूसरी संस्था इलाहाबाद में 1911 में डॉक्टर एस. पी. श्रीवास्तव द्वारा स्थापित की गई। अभी तक दवाएं बाहर से आती थी परंतु 1914 में विश्व युद्ध छिड़ जाने के कारण दवाएं बाहर से आना बंद हो गई लेकिन इलेक्ट्रो होम्योपैथिक डॉक्टरों का उत्साह बंद नहीं हुआ। लखनऊ के डाक्टर बलदेव सक्सेना कैसर बाग में इलेक्ट्रो होमियोपैथी से प्रैक्टिस किया करते थे।
इस तरह से अनेकों इलेक्ट्रो होम्योपैथिक डॉक्टरों ने इस पैथी के प्रचार प्रसार के लिए काफी सहयोग किया था जिनमें डॉक्टर बी.एन. कुलकर्णी, डॉक्टर तांबे (पुणे),डॉक्टर रमन, डाक्टर युद्धवीर सिंह, डॉक्टर नंदलाल सिन्हा कानपुर (उत्तरप्रदेश), डाक्टर आर सी प्रसाद पटना (बिहार), बिहार में डॉक्टर प्रभाकर मिश्रा,डॉक्टर अशोक सिंह और उत्तर प्रदेश में डॉ. एच.एम.इदरिशी, डॉक्टर वी.कुमार, डॉ.आर.एस.प्रसाद, डॉक्टर बी.बी.सिन्हा कानपुर के नाम प्रमुखता से लिए जाते है।
प्रथम विश्व युद्ध से पहले लंदन में “मैटी एसोसिएशन” की स्थापना भी हो चुकी थी इस एसोसिएशन द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य संचालित किया गया था। इस संस्था की पहली पत्रिका का नाम “मॉडर्न मेडिसिन” नाम था जो प्रकाशित की गई थी।
कार्यक्रम संयोजक डॉ.राजेंद्र सिंह ने बताया की आज के समय में भारत में अधिनियम 21 सन 1860 में रजिस्टर्ड होकर कई शिक्षण संस्थाएं चल रही है जिनमें इलेक्ट्रोपैथी का प्रचार,प्रसार,शिक्षण,प्रशिक्षण हो रहा है और इन लोगों के बल पर ही आज इलेक्ट्रो होमियोपैथी जीवित है उत्तर प्रदेश में और पूरे भारत में इलेक्ट्रोपैथी चिकित्सक अपनी मान्यता के लिए प्रयास कर रहे हैं। आज भारत की संसद में भी इलेक्ट्रो होमीयोपैथी विधा के उपर बहस भी हो चुकी है, सरकार ने भी इसे संज्ञान में लेकर मान्यता देने पर विचार करने के लिए आवश्यक कमेटी का गठन कर चुकी है जिसमे विद्वान इलेक्ट्रो होमियोपैथिक विशेषज्ञों से राय ली जा रही है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ.राधेश्याम केसरी ने किया।
इस अवसर पर डॉ. शिवमूर्ति कुशवाहा, डॉ. रामअवतार सिंह, डॉ.राजेश सिंह, डॉक्टर त्रिलोचन सिंह, डॉ. अजय, डॉ. इरफान, डॉ. सौदागर सिंह, डॉ. अशोक सिंह, डॉ.अनिल सिंह ने अपने विचार रखे।