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गांव से शहर तक अनकहे किस्से का हुआ समारोहपूर्वक विमोचन

गाजीपुर। पं. श्रीनिवास द्विवेदी की आत्मकथा “गांव से शहर तक अनकहे किस्से” का विमोचन रविवार को उनके पैतृक गांव सुल्तानपुर में हुआ।

इस मौके पर वक्ताओं ने उनसे जुड़ी स्मृतियों को साझा करते हुए स्व.द्विवेदी की पत्नी निर्मला द्विवेदी के प्रयासों और कार्यो की सराहना की। क्योंकि आत्मकथा लिखने के बाद प्रकाशन से पूर्व ही उनका असामायिक निधन हो गया था।निर्मला द्विवेदी ने हीं अपने देखरेख में इसे पूर्णता प्रदान की और प्रकाशित कराया। कार्यक्रम का शुभारंभ पं. श्रीनिवास द्विवेदी के चित्र के समक्ष अतिथियों द्वारा द्वीप प्रज्जवलन और माल्यार्पण से हुआ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि चर्चित कवि बुध्दिनाथ मिश्र ने कहा कि बैंक में राजभाषा अधिकारी के बतौर कार्य करते हुए अनेक अवसर आए जब द्विवेदी जी से मिलने का अवसर मिला। 1968 में वह जब राजभाषा अधिकारी के तौर पर बैंक में आए तो वह हिंदी के सरकारी भाषा के रुप में पनपने का दौर था। द्विवेदी जी उसमें अग्रणी भूमिका निभा रहे थे।उनकी पुस्तकें, शब्दकोश आधारशिला हैं।शब्द निर्माण में भी उनका योगदान है। उन्होंने जय श्रीराम और जय सियाराम के अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि संघर्ष में श्री राम हैं, लेकिन वहां सीता नहीं हैं। जब भक्ति है शांति है तब सीता हैं राधा हैं। समाज में बिखराव बहुत हो गया है, भाईयों के बीच प्रेम देखता हूं तो अच्छा लगता है।उन्होंने भोजपुरी सहित अपने तीन गीत सुनाकर श्रोताओं की वाहवाही बटोरी।
अध्यक्षता कर रहे प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि यह ऐतिहासिक अवसर है, खुशी की बात है कि आत्मकथा का विमोचन गांव में हो रहा है। दुख की बात है कि आज द्विवेदी जी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन जीवन की सीमा है फिर भी वह अपनी आत्मकथा के साथ हमारे बीच हैं। उन्होंने निर्मला द्विवेदी को प्रतीक बताते हुए कहा कि अपनी बहुओं को बेटी की तरह रखिए। बेटियों से दोनों कुल आगे बढ़ता है बेटियां बढ़ाती हैं। साहित्य और संस्कार ही हमलोगों को बचा सकता है। कोरोना ने सीखा दिया कि प्रेम से बड़ा कुछ नहीं। हम सभी को ज्ञान पर ध्यान देने की आवश्यकता है।यह जो साहित्यिक आयोजन का सिलसिला शुरू हुआ है वह आगे बढ़ता रहेगा। प्रदेश सरकार के सेवानिवृत्त उपायुक्त खाद्य बुध्दिसागर द्विवेदी ने कहा कि निर्मला द्विवेदी ने बहुत नायाब कार्य किया है गांव में विमोचन कराकर।दुनिया के किसी कोने में रहें गांव दिल में रहता है।शिक्षा के अलावा आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं है। प्रो. आनंद प्रधान ने कहा कि यह आत्मकथा शिक्षा के संघर्ष की कहानी है। शिक्षा नये रास्ते कैसे खोलती है उसकी कहानी है। आत्मकथा का आधा हिस्सा शिक्षा के लिए संघर्ष का है। आजादी के बाद ही यह संभव हुआ कि लोगों को अवसर मिले। आजादी के बाद देश में बहुत बदलाव हुआ है कुछ बदलाव अच्छे हैं जबकि कुछ बुरे। इस तरह के आयोजन नियमित होते रहेंगे तो लोग बहुत कुछ सीखेंगे।
समारोह में अतिथियों का स्वागत व पुस्तक परिचय आयोजक निर्मला द्विवेदी ने दिया। शिवकुमार शर्मा और वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु उपाध्याय ने भी संबोधित किया।संचालन अविनाश पांडेय ने किया और सरस्वती वंदना की प्रस्तुति राजेश तिवारी ने दी। आगंतुकों के प्रति आभार शिवमूर्ति दूबे ने ज्ञापित किया। अतिथियों का अंगवस्त्रम देकर सम्मान निर्मला द्विवेदी ने किया।
इस मौके पर गांव से शहर तक अनकहे किस्से के विक्रय से प्राप्त धनराशि को मां गंगा तट सुल्तानपुर में महाश्मशान के लिए जमीन खरीदने के लिए लेट मित्रसेन प्रधान मेमोरियल सेवा ट्रस्ट को देने की घोषणा निर्मला द्विवेदी ने की।