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ड्रिप एवं स्प्रिंकल सिंचाई प्रणाली द्वारा भूगर्भ जल के संरक्षण पर कृषकों को दिया गया प्रशिक्षण

गाजीपुर। ड्रिप एवं स्प्रिंकल सिंचाई प्रणाली द्वारा भूगर्भ जल के संरक्षण पर कृषकों को गुरुवार को प्रशिक्षण दिया गया।
हमारे देश की कृषि व्यवस्था में फसलों की सिंचाई ज्यादातर बाढ़ पद्धति पर र्निभर है जिसमें आवश्यकता से अधिक सिंचाई जल प्रयुक्त होता है। यद्यपि फसल अपनी आवश्यकता अनुसार ही जल का उपयोग करता है और बचा हुआ जल वाष्प और मृदा द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इस प्रकार से भूगर्भ जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है।
इस जल को संरक्षित रखने और सिंचाई में आवश्यकतानुसार उपयोग करने विषय पर जनपद के कृषकों को जागरूक करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र, अंकुशपुर, गाज़ीपुर जो आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित है। वैज्ञानिकों द्वारा राष्ट्रीय कृषि विकास योजनान्तर्गत दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण “बौछारी एवं टपक सिंचाई पद्धति से फसल उत्पादन” विषय पर प्रशिक्षण के अंतिम दिन करण्डा विकास खंड के ग्राम रेवसा में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजीव सिंह प्रगतिशील कृषक ने कहां  जनपद के किसानों द्वारा सिंचाई जल के रूप में भूगर्व जल का जो अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है उसका दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा अत : भूगर्व जल की सिंचाई में समुचित प्रबंधन करने हेतु ड्रिप,बौछारी सिंचाई को अपनाना चाहिए। उक्त अवसर पर केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक और इस कृषक प्रशिक्षण की अध्यक्षता कर रहे डॉ. ए. के. सिंह ने बताया पशुपालन, मुर्गी पालन, बकरी पालन, मधुमक्खी पालन इत्यादि के बारे में जानकारी प्रदान करते हुए सिंचाई जल के सामुहित प्रबंधन के लाभ पर प्रकाश डाला और यह भी बताया की इन संसाधनों की उचित प्रबंधन से कृषक की आमदनी में कैसे वृद्धि होगी और साथ ही साथ पर्यावरण को कैसे सुरछित रख सकते है। इस अवसर पर प्रशिक्षण समन्वयक वैज्ञानिक डॉ. शशांक शेखर ने बताया की पिछले 15 से 20 वर्षों में टपक सिंचाई विधि की लोकप्रियता भारत के विभिन्न राज्यों में बढ़ी है, और यह भी बताया की यह सिंचाई पद्धति उन क्षेत्रों के लिए अत्यन्त ही उपयुक्त है जहाँ जल की कमी होती है, खेती की जमीन असमतल होती है और सिंचाई प्रक्रिया खर्चीली होती है। सिंचाई की यह विधि फल बगीचों के क्षेत्रों के साथ साथ अन्य फसलों के लिए अत्यन्त ही उपयुक्त है। इस सिंचाई पद्धति से फसल की जल उपयोग दक्षता लगभग 90-95 प्रतिशत तक होती है जबकि पारम्परिक सिंचाई प्रणाली में जल उपयोग दक्षता लगभग 50 प्रतिशत तक ही होती है। केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र प्रताप ने बताया की इस सिंचाई पद्धति को कतार वाली फसलों, सब्जी फसलों के लिए बहुत ही उपयुक्त है साथ ही उर्वरक एवं दवा को मानक के अनुरूप ही सीधे फसल की जड़ को उपलब्ध कराया जाता है। वैज्ञानिक डॉ. शशांक सिंह ने औद्यानिक फसलो में बौछारी एवं टपक सिंचाई प्रणाली के प्रयोग की विधि पर विस्तार से चर्चा किया एवं इसकी सहायता से कृषक कैसे अपनी आय में वृद्धि करे की तकनिकी जानकारी प्रदान किया। इस अवसर पर डॉ. ए. के. राय भी उपस्थित रहे और किसानो को मृदा परिक्षण के बारे में जानकारी प्रदान किया। इस  प्रशिक्षण में प्रगतिशील कृषक धर्मेन्द्र, अवधेश, बसंत कुमार, सूर्यनाथ आदि सहित कुल 50 कृषकों ने प्रतिभाग किया।