मलसा (गाजीपुर)। सब्बलपुर रामलीला मैदान में आयोजित पंच दिवसीय रामचरित मानस सम्मेलन में बक्सर बिहार से पधारे हुए हिंमाशु स्वामी ने कथा अमृत पान कराते हुए भगवान अवतार क्यों लेते हैं की चर्चा किया।
जब एक बार हिमालय में बाबा भोलेनाथ शांत भाव से सुखासन अवस्था में बैठे हुए थे तभी सुअवसर जान कर पार्वती जी ने प्रश्न किया कि हे जगतगुरु महेश्वर मेरे मन में एक संदेह है कृपया अपनी दासी समझकर मेरे संशय का निवारण किजिए। रामजी जो कि अयोध्या नरेश दशरथ जी के पुत्र थे का नाम ही सतत जपा करते हैं अथवा वह अजन्मा, निर्गुण, निर्विकार, अप्रमेय, सर्वव्यापी व्रह्म का राम ऐसा नाम आप जपा करते हैं। यदि ब्रह्म ही राम हैं तो फिर उनका अवतार क्यों होता है।
क्या राक्षसों का संहार करने के लिए ब्रह्म का अवतार होता है अथवा साधू संत, गाय, देवता को सुख देने के लिए?
शंकर जी ने पार्वती जी को धन्यवाद दिया कि हे पार्वती तुम्हारे इस प्रश्न की वजह से रामकथा संसार को जानने में आएगा और फिर उसे कह सुनकर जीव का परम कल्याण होगा। रामजी का अवतार अपने भक्तों के भाव को रखने के लिए होता है और चूंकि भक्त की बात को रखने के लिए भगवान साकार रूप में अवतार ले ही लेते हैं तो खर पतवार की भांति जगह जगह उत्पन्न हुए राक्षसों का संहार भी कर देते हैं और पृथ्वी पर दुखी गौ, ब्राह्मण, संत समाज को अपना दर्शन देकर उनको सुखी कर देते हैं। मानस सम्मेलन में रोहित तिवारी, बुच्चा महाराज और कथा कोकिला वीणा मिश्रा ने भी मानस जी के विभिन्न प्रसंगों को उपस्थित श्रोताओं को सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया। कथा मंच का संचालन भीम साधू ने किया।