Skip to content

भक्तों ने राम कथा का किया अमृत पान

मलसा (गाजीपुर)। क्षेत्र के ग्राम भगीरथपुर स्थित हनुमान मंदिर में आयोजित रामकथा के दूसरे दिन रामकथा सुनाते हुए भागवताचार्य चंद्रेश महाराज ने कहा कि अहिंसा परमो धर्म ऐसा शास्त्र में उल्लेख किया गया है लेकिन धर्म के लिए, नीति की रक्षा के लिए अथवा समाज की भलाई के लिए अत्यंत आवश्यक हो जाए, तो हिंसा करने से भी परहेज नहीं करना चाहिए।

जब विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा हेतु राम लक्ष्मण उनके साथ जा रहे थे तो सर्वप्रथम ताड़का से सामना हुआ और जब विश्वामित्र ने कहा कि हे राम इस घोर राक्षसी को मार डालो। रामजी ने विरोध करते हुए कहा कि गुरूदेव यह स्त्री है इसलिए इसका वध तो पाप होगा।गौ, स्त्री और ब्राह्मण का वध करना वेदों की आज्ञा का उलंघन करना होगा तो क्या आप आज्ञा देते हैं कि ऐसा अधर्म किया जाए। विश्वामित्र ने कहा कि हे राम धर्म के मार्ग में जो भी बाधक बने उसका बध करना पाप नहीं है, वह चाहे ब्राह्मण हो या स्त्री। सत्संग में बुच्चा महाराज ने कथा अमृत पान कराते हुए कहा कि हनुमान जी बलवान, शीलवान और विवेकवान हैं लेकिन सर्व गुण संपन्न होने के बाद भी जब कार्य संपादन के लिए जब चलने लगते हैं तब अपने साथ में मौजूद वयोवृद्ध अनुभव के धनी जामवंत जी से पूछते हैं कि हे महाराज मैं इस खारे समुद्र को पी कर सुखा सकता हूं, राक्षसों सहित उनके राजा रावण को मार सकता हूं, यही नहीं जिस त्रिकूट पर्वत पर यह लंका बसी हुई है उस त्रिकूट पर्वत समेत लंका को इस समुद्र में डुबो दूँ। यह सब कर सकता हूं लेकिन आपसे यह पूछता हूँ कि मुझे क्या करना चाहिए। यह प्रसंग आज के परिप्रेक्ष्य में युवाओं को शिक्षाप्रद है कि आपके अंदर जोश तो जरूर है लेकिन किसी बुजुर्ग के, अपने माता पिता के द्वारा होश में दिये गये सलाह को अपने जीवन में महत्व देकर अपने जीवन को आगे बढ़ाये तो सफलता अवश्य मिलेगी।