मलसा (गाजीपुर)। भगीरथपुर स्थित झारखण्डे महादेव मंदिर परिसर में आयोजित एकदिवसीय रामकथा में भागवताचार्य चंद्रेश महाराज ने एक आदर्श दम्पत्ति के तौर पर रामजी और सीताजी के वैवाहिक जीवन का उल्लेख करते हुए कहा कि ब्रह्म का अवतार अनेक बार और अनेक रूपों में हुआ है लेकिन रामावतार में वह मनुष्य को जीवन में अपने कर्तव्य और अधिकार का किस प्रकार से उपयोग करना चाहिए यह दिखाया है।
पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए अनेक कष्ट सहे परन्तु आज्ञा भंग नहीं किया। रामजी ने भाइयों को इतना ज्यादा प्रेमयुक्त व्यवहार दिया कि सभी भाई उनके लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने में भी नहीं हिचकते हैं।लक्ष्मण राजसुख और पत्नी को छोड़कर जंगल, पहाड़ के नाना प्रकार के दुःख झेलते हैं तो भरत प्राप्त हुए अयोध्या के राजसिंहासन को अस्वीकार कर रामजी को वापस अयोध्या लिवा लाने के लिए चित्रकूट तक पहुंच गये, ताजिंदगी अपनी जन्मदात्री को मां नहीं कहा और चौदह वर्ष जब तक रामजी वापस नहीं आ गये तब तक भरत झोपड़ी में और वह भी जमीन में गुफा बनाकर रहे। ऐसा इसलिए हो सका क्योंकि रामजी ने सबके साथ प्रेम का, समता का व्यवहार किया। पत्नी सीता को मना भी किया रामजी ने कि तुम अयोध्या में ही रहकर सास ससुर की सेवा करो, हमारे साथ वन में मत चलो,वन में रास्ते पथरीले,कंटक और कंकड़ पत्थर से युक्त होंगे। भयंकर सिंह बाघ, जहरीले सांप बिच्छू का भय बना रहेगा जंगल में इसलिए हे सीता तुम यहीं अयोध्या में ही रहो लेकिन सीता जी ने एक पतिव्रता स्त्री का धर्म निभाते हुए रामजी के साथ वन का कष्ट सहना उचित समझा वनिस्पत राजमहल के ऐश्वर्य और वैभव का उपभोग करने के। इस आयोजन में राधेश्याम चौबे, विनोद श्रीवास्तव और कैलाश यादव ने भी कथा अमृत पान कराया।कथा यजमान रामाश्रय शर्मा ने कथावाचकों का पुष्पहार पहनाकर और समस्त श्रोताओं को प्रसाद वितरित करके सबके प्रति आभार व्यक्त किया।