मतसा (गाजीपुर)। क्षेत्र के मलसा करैला स्थित लालदास बाबा की कुटिया पर आयोजित एक दिवसीय रामकथा में बुच्चा महाराज ने कहा कि संतों की महिमा अनंत है। संतों की महिमा का बखान शेष, शारदा भी करने में सक्षम नहीं हैं।
संत ही हाथ पकड़कर भक्त को भगवंत के चरणों तक केवल पहुंचाता ही नहीं अपितु भगवंत कृपा पात्र बना देता है। यद्यपि जीव बुराइयों का पुतला बन अनेक जन्मों तक सम्पत्ति और संतति के चक्कर में चक्करघिन्नी की तरह घूमता रहता है परन्तु जब ऐसे दुखिया जीव पर संत की निगाह पड़ जाती थी तब भगवान का दास बनाकर अथवा मित्र बनाकर जीव का उद्धार करने का काम संत कर देता है। हनुमान जी जब माता सीता की खोज करने लंका में गये तो उन्हें भगवान के भक्त विभीषण मिले जो अपनी तामसी प्रवृत्ति और राक्षस कुल को लेकर निराश थे कि हमारे जैसे को भगवान कैसे स्वीकार करेंगे। अपनी यह निराशा विभीषण ने हनुमान जी के सामने प्रस्तुत किया। हनुमान जी ने यह कहकर कि भगवान को जाति, कुल, गोत्र, धन, पद -प्रतिष्ठा से नहीं अपितु सम्पूर्ण समर्पण से प्राप्त किया जा सकता है इसलिए हे विभीषण तुम निराशा छोड़ भगवान की शरण में चलो। इसी तरह भगवान को सुग्रीव का मित्र बनाकर हनुमान जी ने भाई बाली के भय से भयभीत सुग्रीव का दुख निवारण किया। इस आयोजन में चंद्रेश महाराज, राधेश्याम चौबे और विनोद श्रीवास्तव ने भी कथा अमृत पान कराया।