मलसा (गाजीपुर)। भगीरथपुर स्थित झारखंडे महादेव मंदिर परिसर में आयोजित अधिकमास पर्यंत चलने वाली कथा के सत्रहवें दिन कथा अमृत पान कराते हुए चंद्रेश महाराज ने कहा कि काम, क्रोध और लोभ जिस व्यक्ति, घर अथवा नगर में अपना प्रभाव बना लेंगे या हों कहें कि जिसके जीवन में इन तीनों की अधिकता हो जाएगी उसके जीवन से ज्ञान, वैराग्य और भक्ति निकल जाएंगे।
कहने का तात्पर्य यह है कि जीवन में काम, क्रोध और लोभ का संतुलन होना चाहिए, क्योंकि सामान्यत: देखा गया है इनको कुछ समय तक दबाए तो रखा जा सकता है लेकिन समाप्त करना अत्यंत ही कठिन है। अयोध्या नरेश राजा दशरथ के जीवन में काम, कैकेई के जीवन में क्रोध एवं लोभ अनियंत्रित हुए तो राम रूपी ज्ञान,सीता रूपी भक्ति और लक्ष्मण रूपी वैराग्य अयोध्या से निकल गए।यह तीनों वापस हुए लेकिन तब जब कि काम नियंत्रित हुआ, दशरथ जी का देहांत हुआ, अयोध्या के नर नारियों ने राम के वापसी की इच्छा से काम, क्रोध एवं लोभ पर नियंत्रण रखा। महाराज ने आगे कहा कि जनकपुर में बारात लेकर जब दशरथ जी पहुंचे तो उनके साथ गुरु वशिष्ठ, अयोध्या के श्रेष्ठ जन तथा भरत और शत्रुघ्न भी हैं।भरत शत्रुघ्न को देखकर जनकपुर निवासी आपस में चर्चा करते हैं कि यह दोनों तो एकदम राम लक्ष्मण जैसे ही हैं।सब लोग राजा जनक एवं दशरथ जी के पुण्य की सराहना करते हैं कि धन्य हैं दोनों राजा कि सीता जैसी पुत्री जनक जी को राम जैसे पुत्र दशरथ जी को मिले। यदि संस्कारी पुत्र और पुत्री किसी को हैं तो इसमें उस व्यक्ति के पुण्य कर्म की भूमिका होती है, और यदि दुख देने वाली संतान है तो पूर्व जीवन में माता पिता के द्वारा पाप कर्म की ही भूमिका माननी चाहिए।
आज की कथा में राम सीता के विवाह प्रसंग की कथा सुनाते हुए महाराज ने बिगड़ती परम्परा की चर्चा किया कि पहले बारातियों की अगवानी करने के लिए घर,रिस्ते एवं गांव नगर के लोग जाते थे और सम्मानपूर्वक आगवानी करते हुए दरवाजे तक लाते थे फिर द्वारपूजा का मांगलिक कार्य सम्पन्न होता था लेकिन आज डीजे और चकाचौंध करने वाली सजावट में सब अच्छी परम्पराओं को लोग भूलते जा रहे हैं। आज की कथा में राम- सीता, भरत -मांडवी, लक्ष्मण- उर्मिला और शत्रुघ्न एवं श्रुतकीर्ति के विवाह प्रसंग को सुनने के लिए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु श्रोताओं की उपस्थिति रही। इस आयोजन में राधेश्याम चौबे,बुच्चा महाराज, कैलाश यादव, रामाश्रय शर्मा और कमलेश राय ने भी कथा अमृत पान कराया।