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राम ज्ञान हैं तो सीता भक्ति हैं-चंद्रेश महाराज

मलसा (गाजीपुर)। भगीरथपुर स्थित झारखंडे महादेव मंदिर परिसर में आयोजित अधिकमास पर्यंत चलने वाली कथा के सोलहवें दिन कथा अमृत पान कराते हुए चंद्रेश महाराज ने कहा कि सीताराम विवाह के अवसर पर सज्जन तो रामजी के साथ सीताजी का विवाह हो ऐसी प्रार्थना कर रहे थे तो वहीं पर कुछ मूर्ख लोग भी थे। जिनकी भावना यह थी कि सीताजी का उनके ही साथ विवाह हो और ऐसा सोचना उनकी मूर्खता ही कही जाएगी क्योंकि राम शक्तिमान हैं।

इस नाते शक्ति रूपी सीता तो उनको ही वरण करेगी या यों कहें कि राम ज्ञान हैं तो सीता भक्ति हैं इसलिए भगवान जहां वहीं भक्ति अथवा जहां भक्ति वहीं भगवान होंगे परन्तु दुष्ट राजा इस तथ्य से परे हटकर सोच ही नहीं रहे बल्कि प्रयास भी करते हैं।
सीताजी ने जब रामजी के गले में वरमाला पहना दिया तब मूर्ख राजा उदंडता पर उतारू हो गए और सीताजी को जबरदस्ती प्राप्त करने तथा राम लक्ष्मण और यदि उनकी सहायता करें तो राजा जनक को बंदी बना लेने तक की असंभव योजना में लग गए, इसी अवसर पर परशुरामजी का धनुष यज्ञ शाला में प्रवेश किये ।बकवादी राजा तो परशुरामजी को देखकर ही भयवश छिपने लगे और बहुत तो मौका पाकर भग गये। रामजी और परशुराम जी दोनों ब्रह्म के अवतार हैं, फर्क यह है कि परशुराम जी क्रोध और अहंकार के प्रतीक रहे तो रामजी मनुष्योचित मर्यादा में रहकर धर्म की स्थापना हेतु राक्षसों का नास करने तथा विप्र, धेनु, सुर, संत की रक्षा हेतु अवतरित हुए थे।
महाराज जी ने आगे बताया कि परशुराम जी से रामजी का व्यवहार हम सबके लिए यह शिक्षा देता है कि जिसने समाज में कुछ भी अच्छा कार्य किया है तो उसका सम्मान करना चाहिए लेकिन यदि वह अपने कृतित्व का अहंकार प्रदर्शित करने लगे तो उसके अहंकार का शमन भी जरूरी है। रामजी के विनययुक्त और गंभीर बातों से प्रभावित होकर परशुराम जी रामजी को विष्णु भगवान की धनुष सौंप दिया और यह मानकर कि लगता यह ब्रह्म के अवतार हैं, स्वयं तपस्या के लिए चले गए।