मलसा (गाजीपुर)। भगीरथपुर स्थित झारखंडे महादेव मंदिर परिसर में आयोजित अधिकमास पर्यंत चलने वाली कथा के उन्नीसवें दिन कथा अमृत पान कराते हुए चंद्रेश महाराज ने कहा कि कुसंगत का असर व्यक्ति पर क्या अनर्थ कर सकता है यदि जानना हो तो राम जी का राजतिलक होने की जगह वनवास हो जाने की घटना से जाना जा सकता है।
कैकेई का राम के प्रति बहुत स्नेह था। रामजी ही नहीं अपितु सीताजी के लिए बहुत अच्छा भाव रखती थी। कैकेई यहां तक कि भगवान से प्रार्थना करते हुए कहती है कि हे प्रभु यदि मुझे फिर मनुष्य शरीर मिले और फिर से माता बनने का गौरव हासिल हो तो राम ही मेरा पुत्र बने और सीता पुत्रवधू हो। ऐसा भाव रखने वाली कैकेई मंथरा की कुसंगत में पड़कर राम को वनवास मांगती है और यहां तक कहती है कि यदि सुबह होते होते राम वन नहीं गये तो मैं प्राण दे दूंगी। परिवार में कैकेई को मंथरा का कुसंग का रंग चढ़ा तो परिणाम स्वरूप राम का वनवास हुआ, राजा दशरथ का प्राणान्त हुआ और चौदह वर्ष तक अयोध्या के समस्त नर नारी राम वियोग का दुख सहने को मजबूर हुए। रामजी के जीवन को आदर्श जीवन माना जाता है तो उसके पीछे उनका उत्तम व्यवहार ही है। जब कैकेई जी के इस मांग को सुनकर दशरथ मृत प्राय से होकर भूमि पर गिरे पड़े हैं और समूचे अवधवासी इस मांग के विरोध में हैं ,वैसे समय रामजी ने इसको सहजता से स्वीकार करके समूचे मानव समाज को शिक्षा दिया हो कि परिवार,गांव, नगर और देश का हित सधता हो तो अपना नुकसान हो रहा हो तो भी उसे स्वीकार कर लेना ही ठीक होगा। रामजी के निर्णय का साथ देने के लिए उनकी धर्मपत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण भी वन में साथ चलने को तैयार हो गये। यद्यपि कैकेई राम की विमाता हैं लेकिन न तो राम ने उनके विरुद्ध आचरण किया और और न ही राम की अपनी माता कौशल्या और लक्ष्मण की मां सुमित्रा ने ही कैकेई का विरोध किया। किसी परिवार, समाज अथवा देश को चलाना हो तो कुछ अप्रिय लगने वाली बात भी बर्दाश्त कर लेनी चाहिए। राम,सीता और लक्ष्मण जो कि हमेशा सुख सुविधा में पले बढ़े हुए थे ,बल्कल वस्त्र पहनकर सबको प्रणाम कर आशीर्वाद प्राप्त करते हुए वन को चल दिए। राम के अच्छे व्यवहार से उनके स्नेह पाश में बंधी हुई अयोध्या की सारी प्रजा भी पीछे- पीछे चल दी। रामजी के मुख पर कोई दुख का चिन्ह नहीं है और जब राजतिलक होने वाला था तब भी उन्हें कोई विशेष खुशी भी नहीं हुई थी। यही राम का रामत्व है जिसके कारण हजारों लाखों वर्षो से वह जन- जन के हृदय में बसते हैं। इस आयोजन में राधेश्याम चौबे, काशीनाथ यादव ,कैलाश यादव,बुच्चा महाराज और कमलेश राय ने भी कथा अमृत पान कराकर श्रोताओं को आह्लादित किया।