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राम सनातन संस्कृति के मुकुट मणि हैं-चंद्रेश महाराज

मलसा (गाजीपुर)। भगीरथपुर स्थित झारखंडे महादेव मंदिर परिसर में आयोजित अधिकमास पर्यंत चलने वाली कथा के बीसवें दिन कथा अमृत पान कराते हुए चंद्रेश महाराज ने कहा जब भी कोई महान कार्य होता है तब कर्ता अथवा कर्तव्य पथ पर चलने लोगों को यश मिलता है तो कुछ अच्छा कार्य करने के बाद भी अपयश के भागी बन जाते हैं।

राम सनातन संस्कृति के मुकुट मणि हैं तो इनके इस स्थान पर विराजमान होने के पीछे उनके छोटे भाइयों, विशेषकर भरत की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यही नहीं भरत की माता कैकेई ने राम अवतार के हेतु को पूरा करने में लोक में कभी न मिटने वाला कलंक स्वीकार किया, वैधव्य स्वीकार किया जो कि किसी भी स्त्री के लिए सबसे कठिन जीवन होता है और अपने पुत्र भरत के घृणा का पात्र बनी। विप्र, धेनु,सुर, संत हित मनुष्य शरीर धारण करने वाले राम पिता दशरथ के पुत्र प्रेम के स्नेह पाश में फंसे रह जाते और अयोध्या के राजमहल और राजगद्दी तक ही सिमट कर रह गये होते, उनके धरा धाम पर अवतरित होने का उद्देश्य संभवतः अधूरा ही रह जाता। कैकेई कर्म स्वरूपा हैं और कर्मवादी कभी भावनाओं में फंसकर नियत कर्म से भटकता नहीं है।रावण के अत्याचार से त्राहि त्राहि कर रहे साधू महत्मा पूजा पाठ,यज्ञ इत्यादि कर नहीं पा रहे थे इस बात को विश्वामित्र मुनि के अयोध्या आकर राजा दशरथ से राम लक्ष्मण की याचना करने की घटना से कैकेई समझ चुकी थी और राजा दशरथ के पुत्र मोह को देखकर निश्चय कर चुकी थी कि ऋषि मुनियों, तपस्वियों को सुख देने तथा राक्षसों के नाश के लिए राम को लम्बे समय तक वनवास में भेजना जरूरी है।
महाराज जी ने आगे कहा कि रामजी का वनवास हुआ और वन में ऋषि मुनियों को दर्शन लाभ मिला,कोल भीलों के दुख दर्द को जाना समझा, उनके साथ मानवता का व्यवहार किया और राक्षसों का संहार किया। धर्म के पथ को सुगम बनाया और वनवास काल समाप्त होने के बाद अयोध्या वापस आकर राजसिंहासन पर बैठकर भाइयों सहित अयोध्यावासियों को सुखी किये। इस आयोजन में राधेश्याम चौबे, काशीनाथ यादव, कमलेश राय, कैलाश यादव और बुच्चा महाराज ने भी रामकथा सुनाकर श्रोताओं को आह्लादित किया।