मलसा (गाजीपुर)। भगीरथपुर स्थित झारखंडे महादेव मंदिर परिसर में आयोजित अधिकमास पर्यंत चलने वाली कथा के पच्चीसवें दिन श्रीमद्भागवत महापुराण कथा सुनाते हुए बलराम दास त्यागी महाराज ने कहा कि भगवान की पूजा से पूर्व या पश्चात यदि हम संसार की कोई वस्तु मांगते हैं तो यह कपट धर्म कहलाता है और यदि निष्काम पूजा करते हैं, कोई मांग नहीं करते हैं तो यह निष्कपट धर्म है।
निष्काम भाव से भगवान को चाहने वाला, इर्ष्या,मद, मत्सर से रहित हृदय वाला व्यक्ति ही श्रीमद्भागवत महापुराण कथा सुनने का अधिकारी है। भगवान को तत्वत: जानने वाला, समस्त कामनाओं से रहित, वेद शास्त्र को जानने वाला वक्ता ही श्रीमद्भागवत कथा सुनाने का अधिकारी है।वेद रूपी कल्पवृक्ष का पका हुआ फल है भागवत कथा। इस कथा में प्रवेश उसी का होता है जिसके पिछले अनेक जन्मों का संचित पुण्य उदित हो गया होता है वही इस कथा में प्रवेश कर सकता है। जिसका प्रवेश हो गया फिर उसके लिए लोक परलोक में कुछ भी असम्भव नहीं रहता। भगवान की भक्ति चाहिए तो भक्ति मिलती है, ज्ञान वैराग्य चाहिए तो ज्ञान वैराग्य और कामना हो तो संसार का समस्त वैभव भी प्रदान करती है श्रीमद्भागवत कथा।
महाराज ने आगे कहा कि संसार का सार क्या है,मानव का कल्याण किसमें है, भगवान के अवतार का हेतु क्या है, जीवन का परम लक्ष्य क्या है, भगवान जब धर्म की स्थापना करके अपने धाम को चले जाते हैं तब धर्म किसके शरण में रहता है।इस प्रकार कुल छह प्रश्न सूत जी से शौनकादि ऋषिगण ने पूछा तो अपने गुरु को स्मरण करके सूत जी बोले कि जीवन का परम लक्ष्य है तत्व जिज्ञासा। मैं कौन हूं ? और इसे हम कर्मों के द्वारा नहीं जान सकते हैं।इसको ज्ञानी इस प्रकार बतलाते हैं कि तत्व कोई और नहीं बल्कि परमात्मा ही मूल तत्व है।जो कुछ भी हम इंद्रियों से देख और अनुभव कर रहे हैं वह सब परमात्मा ही है,इस सिद्धांत के अनुसार हम भी परमात्मा के ही अंश हैं। यही कारण है कि हम व्याकुल होकर कभी इधर कभी उधर,कभी इसमें कभी उसमें अपने अंशी को तलाश करते रहते हैं। जैसे कि नदियां अपने अंशी समुद्र की ओर, अग्नि अपने अंशी सूर्य की तरफ उन्मुख होता है उसी प्रकार आनंद के मूल श्रोत परमात्मा को हम तलाश करते हैं लेकिन अज्ञानता के कारण कभी संपत्ति में कभी संतति में आनंद को खोजते फिरते हैं।जब कोई परमात्मा को तत्वत: जानने वाला संत मिलता है तो वह हमारे अज्ञान को दूर करके ज्ञान का प्रकाश प्रदान कर देता है तब हम आनंद कंद भगवान को पाने हेतु साधन में लग जाते हैं।