गाजीपुर । जनपद गाजीपुर में लगभग 1.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की खेती की जाती है। जिसमें से सेवराई, जमानिया व भदौरा विकास खण्डों में लंबी अवधि के धान की प्रजाति की खेती की जाती है। प्रायः यह देखा जाता है कि धान की कटाई के बाद खेतों को रबी की फसल बुवाई हेतु जल्दी खाली करने के लिए किसान फसल के अवशेष अर्थात पराली को जलाते है। किसानों को ऐसा भ्रम भी फैला हुआ है कि फसल के अवशेष को जलाने के बाद उत्पन्न हुई राख मिट्टी की उर्वरकता को बढाते है, जबकि पराली या अन्य फसल अवशेषों को जलाने से मृदा की उर्वरा क्षमता नष्ट होती है। उसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो जाती है जिसके कारण अगली फसल में उच्च उत्पादकता हेतु किसान और ज्यादा मात्रा मे रासायनिक खादों का प्रयोग करता है और खेती की लागत बढ़ जाती है।
यदि किसान इसी तरह से पराली को जलाते रहे और उसकी भरपाई हेतु अधिक रासायनिक खादों का प्रयोग करते रहें तो वो दिन दूर नहीं जब समूचे क्षेत्र की भूमि बंजर हो जायेगी। इस प्रक्रिया में अनियंत्रित रूप से भूमिगत जल का दोहन भी भूमिका निभाएगी क्योंकि खेत मे पराली जलाने से खेत की सिंचाई की संख्या बढ़ जाती है। मृदा की हृयूमस जो सैकडो वर्षों में तैयार होती है और हृयूमस मे पौधों की बृद्धि हेतु लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु एवं नमी की प्रचुर मात्रा को मृदा मे संजोये रखती है, पराली के साथ नष्ट हो जाती है।
वही इस प्रकार पराली से कार्बन डाई आक्साइड कार्बन मोनोआक्साइड समेत अनेक जहरीली गैसें मानव स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है, जिससे श्वास सम्बन्धी बीमारियां बढ़ जाती है। ग्लोबल वार्मिंग से जलवायु परिवर्तन में तेजी देखी जा रही है जिसके कारण असमय वर्षा व सूखा से कृषि को काफी नुकसान हो रहा है। भारत सरकार एवं राज्य सरकार की तरफ से पराली प्रबन्धन के लिए कई योजनाएं चलायी है जिसमें से कृषक उत्पादक संगठन के माध्यम से अनुदानित कृषि यंत्र उपलब्ध कराये जाते है इसके अलावा फार्म मशीनरी बैंक तथा व्यक्तिगत किसानों को भी पराली प्रबन्धन के लिए अनुदानित यंत्र उपलब्ध कराये जाते है। इसी के साथ निःशुल्क डी कम्पोजर उपलब्ध कराया जा रहा है जो आसानी से पराली को सडा देता है। सुप्रीम कोर्ट व एन०जी०टी० का सख्त निर्देश है कि पराली न जलाए, इन सारी सुविधाओं व आदेश के बाद भी कोई पराली जलाता है तो दण्ड का प्राविधान है। मंत्री ने प्रचार वाहन को रवाना करते हुए कृषक भाइयों से अपील किया कि पराली को जलाए नहीं बल्कि खेत मे सडाकर खाद के रूप में परिवर्तित करें जिससे अगली फसल में उर्वरक व सिचाई दोनों की मांगों मे भारी कमी आयेगी जिससे लागत कम होगी और आय मे वृद्धि भी होगी।