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9वे दिन जयंत नेत्र भंग, माता अनुसूईया संवाद, विराज वध लीला का हुआ मंचन

गाजीपुर। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वावधान में लीला के 9वे दिन 6अक्टूबर रविवार शाम 6:00 बजे से राजा शंभू नाथ के बाग में पूरी भव्यता के साथ जयंत नेत्र भंग, माता अनुसूईया संवाद, विराज वध लीला का मंचन हुआ। लीला शुरू होने से पूर्व कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी उप मंत्री लव कुमार त्रिवेदी, मेला प्रबंधक मनोज कुमार तिवारी, मेला उप प्रबंधक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष रोहित अग्रवाल ने प्रभु श्री राम लक्ष्मण सीता का पूजन आरती किया। इसके बाद वन्देवाणी विनायकौ आदर्श श्री रामलीला मंडल के कलाकारों ने पूरी भव्यता के साथ लीला का मंचन शुरु किया। लीला में दर्शाया गया कि प्रभु श्री राम अपने वनवास काल के दौरान जंगलों को पार करते हुए चित्रकूट पहुंच कर एक शिला पर विश्राम कर रहे थे कि इसी दौरान उन्हें अपनी पत्नी सीता का श्रृंगार करने की इच्छा प्रकट हुई, वे बगीचे में पहुंचते हैं। और फूल तोड़कर सीता जी का श्रृंगार कर रहे थे कि अचानक देवराज इंद्र का पुत्र जयंत कौवे का रूप बनाकर आया और श्री राम के बल को देखना चाहता था। वह सीता की चरणों में अपने चोंच से चोट पहुंचाता है। उसके चोँच के चोट से सीता जी के चरण से खून की धारा बहने लगता हैं। श्री राम ने सीता के चरण से खून की धारा बहते हुए देखकर तर्कस से तीर निकालकर कौवे के ऊपर प्रहार कर देते हैं। वह तीर कौवे का पीछा करने लगा तब कौवा भगवान श्री राम के छोड़े हुए बाण को देख कर घबराते हुए ब्रह्मा जी के पास जा करके कहता है कि हे प्रभु मेरी रक्षा करें। ब्रह्माजी ने उससे घबराने का कारण पूछा कि आखिर वजह क्या है कि प्रभु श्री राम तुमको मारना चाहते हैं यह सुनकर जयंत ने कहा कि प्रभु श्री राम अपनी पत्नी सीता को फूलों का गजरा बनाकर उनके जुड़े में लगा रहे थे तो मैंने सोचा कि श्री राम तीन लोक के मालिक हैं और वे अपने पत्नी सीता का श्रृंगार कर रहे हैं यह सोचकर उनके बल को मैं जानना चाहा।

इस कारण मैं उनकी भार्या सीता के चरण में चोंच मार दिया। जिससे खून बहने लगा। खून को बहता देखकर श्री राम ने बाण का अनुसंधान करके मेरे ऊपर प्रहार कर दिया। हे प्रभु उनके द्वारा छोड़ा हुआ बाण मेरा पीछा करने लगा मैं डर के कारण दौड़ते हुए आपके पास आया जिससे हमारे जीवन की रक्षा हो सके। इतना सुनने के बाद ब्रह्मा जी ने जयंत को बैठने तक को नहीं कहा उन्होंने कहा कि प्रभु श्री राम से बैर करने वालोकी रक्षा कोई नहीं कर सकता। यहां से तुरंत चले जाओ।वह निराश हो भगवान शंकर के पास कैलाश पर्वतपर जाकर शंकर जी से बोला कि हे भोले नाथ मेरे जीवन की रक्षा करें प्रभु श्री राम के बल को जानने के लिए मैंने कौवे का रूप धारण कर उनके भार्या सीता जी के चरण में अपने चोंच से प्रहार कर दिया, जिससे उनके चरण से खून की धारा बहने लगी। खून की धारा को बहते देखकर प्रभु श्री राम ने बाण का अनुसंधान करके मेरे ऊपर प्रहार कर दिया वह बाण मुझे मारने हेतु पीछा कर रहा है शंकर जी ने जयंत की बात को सुनकर उसको मदद करने से इंकार कर देते हैं। इसके बाद निराश होकर वह निराश होकर चल देता है थोड़ी दूर पहुंचने पर रास्ते में नारद जी से भेंट हो जाता है। वह नारद जी से सारी बातें बता देता है नारद जी उसके सारे बात को सुनकर कहते कि श्री राम से बैर करके तुमने अच्छा नहीं किया है श्री राम से बैर करने वाले की रक्षा तीन लोक में कोई नहीं कर सकता है। अतः तुम मेरी बात मानकर श्री राम के शरण में जाओ और क्षमा की याचना करो वे दीन दुखियों पर दया करते हैं। तुम्हें जरूर क्षमा कर देंगे। नारद जी की बात को सुनकर जयंत भगवान श्री राम के चरणों में गिरकर क्षमा की याचना करता है भगवान श्री राम ने उसके ऊपर दया करते हुए उसका एक आंख फोड़कर उसे जीवनदान देते हैं। इसके बाद लीला के क्रम में प्रभु श्री राम चलते चलते अत्रि ऋषि केआश्रम पहुंचे जहां अत्रि ऋषिभगवान के भजन में लीन थे। उन्हें जब श्री राम के आने की सूचना मिलती है तो ऋषि अत्रि मुनि अपने ध्यान से बाहर होकर श्री राम के दर्शन पाकर प्रसन्न हो जाते हैं। और उन्हें अपने समक्ष आसन देकर कंदमूल फल भेंट करते हैं तथा उनकी स्तुति नमामि भक्त वत्सलं। कृपालु शील कोमलम्।। भजामिते पदाम्बुजं। अकामिना स्वधापदं।। निकाम श्याम सुंदरं। भवांबुनाथमंदरं। प्रफुल्ल कंज लोचनं मदादि दोष मोचनं। इस तरह स्तुति करने के बाद ऋषि अत्रि मुनि प्रभु श्री राम से कहते हैं कि हे प्रभु विनती करी मुनि नाईसिरू कह कर जोरि बहोरि। चरण सरोरूह नाथ जनि कबहु तजै मति मोरि।

इस प्रकार ऋषि अत्रि ने प्रभु श्री राम से कहा कि हे नाथ हमें कभी छोड़िएगा मत उधर सीता जी को माता अनसूया अपने आश्रम के अंदर ले जाकर पति व्रत धर्म के बारे में शिक्षा देती हुई कहती है कि स्त्रियों का धर्म पति के चरणों में ही होना चाहिए। जो नारी पति का अपमान करती है वे घोर नरक में वास करती है। कहां गया है कि एकै धर्म एक व्रत नेमां। काय वचन मन पति पद प्रेमा। स्त्रियों का एक धर्म एक ही कर्म है कि पति के चरणों में हमेशा प्रेम बना रहे। इसके अलावा कहा गया है कि ऐसे पतिकर किए अपमाना, नारी पाई यमपुर दुख नाना। अनसूया कहती है की हे सीते जो नारी अपने पति को छोड़कर पर पुरुष के साथ संबंध बनाती हैं और पति का अपमान करती हैं उसे करने के बाद घोर नरक में जाना पड़ता है। इसलिए नारी का कर्तव्य है कि अपने पति को अपने व्यवहार से खुश रखे उसका तिरस्कार व अपमान नहीं करना चाहिए। इसतरह की सती अनसूया द्वारा सीता जी को शिक्षा देकर आदरपूर्वक विदा किया। श्रीराम ने ऋषि अत्रि मुनि से आज्ञा लेकर आगे वन के लिए प्रस्थान कर देते हैं। आगे चलकर श्री राम प्रभु ने विराज नामक राक्षस का वध कर देते हैं। इस मौके पर मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, उप मंत्री लव कुमार त्रिवेदी, मेला प्रबंधक मनोज कुमार तिवारी, मेला उप प्रबंधक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष रोहित अग्रवाल, कृष्णांत्रिवेदी, भाजपा के वरिष्ठ नेता अखिलेश सिंह, समाजसेवी इंदु सिंह, राजनसिंह आदि मौजूद रहे।