उत्तर प्रदेश। यूपी विधानसभा चुनावों को लेकर राज्य में हलचल काफी तेज है। पिछले थोड़े समय से यहां आरएसएस और बीजेपी के नेताओं की कंटीन्यूअसली बैठक हो रही है। रविवार को बीजेपी के यूपी प्रभारी राधामोहन सिंह, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से मिलने पहुंचे तो कैबिनेट बदलाव की चर्चा फिर से तेज हो गई पर उन्होंने साफ कर दिया कि कैबिनेट विस्तार के फैसले का विशेषाधिकार मुख्यमंत्री के पास ही है।
इससे पहले बीजेपी के महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष भी तीन दिन के लिए उत्तर प्रदेश दौरे में रहे। इस दौरान उन्होंने मंत्रियों और विधायकों से जायज़ा लिया। इस दौरान कई नेताओं ने नाराजगी भी जताई लेकिन लौटते समय कोविड मैनेजमेंट को लेकर योगी सरकार की पीठ थपथपाते गए। यानी बीजेपी और आरएसएस के लिए योगी को सीएम की गद्दी सौंपने का फैसला अब ऐसा हो गया कि उन्हें बदलना या बनाए रखना दोनों ही स्थिति में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
दरअसल इसके पीछे कई सारी वजह बताई जा रही हैं।बिते पिछले चार सालों में योगी आदित्यनाथ की मुख्यमंत्री के रूप में लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है, उनके सामने चार साल पहले के कई प्रतिद्वंदी पिछड़ चुके हैं। इतना ही नहीं ,वह यूपी में 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले बीजेपी के प्रथम मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।
इससे पहले कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह जैसे वरिष्ठ नेता बीजेपी की ओर से राज्य के सीएम बने लेकिन कार्यकाल पूरा करने से चूक गए। इसके अलावा लव जिहाद, सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान से वसूली जैसे कई कड़े कानून बनाकर वह रोल मॉडल बनकर उभरे जिसे बाद में कई राज्यों ने अपनाया।