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जब जीव भक्ति को तैयार होता हैं तो माया बाधक होती हैं-कथावाचक चन्द्रेश महाराज

मतसा (ज़मानियाँ)। जब जीव भक्ति की प्राप्ति करने को तैयार होता हैं तो माया ही बाधक होती हैं जब हनुमान जी भक्ति रूपी माता सीता का पता लगाने के लिए सागर तट से प्रस्थान करते हैं तो उनको सतोगुणी सुरसा तमोगुणी सिंहिका तथा रजोगुणी लंकिनी तीन मायारूपी बाधाओं का सामना करना पड़ा।

हनुमानजी अपने बुद्धि कौशल से संसार सिंधु की उन बाधाओं से निपटते हैं ये बातें ढ़़ंढंनी गांव स्थित हनुमान मंदिर चल रहे संगीतमय श्रीराम कथा के तीसरे व अंतिम दिन कथावाचक चन्द्रेश महाराज ने कहाँ उन्होंने कहाँ सुरसा सतोगुणी सिंहिका तमोगुणी तथा लंकिनी रजोगुणी माया हैं इन तीन प्रकार की माया अर्थात वृतियों से साधक को कैसे निपटना चाहिए हनुमानजी ने अपने चरित्र के माध्यम से बताया कि सतोगुण का मतलब हैं व्यक्ति के अंदर पाए जाने वाला सद्गुण , दया, दान, परोपकार, शारिरिक तथा मानसिक पवित्रता आदि वृतियों के साथ साधक को मिलकर चलना चाहिये। सिंहिका का तमोगुण माया हैं। हनुमानजी उसका वध कर देते हैं। व्यक्ति के अंदर पाए जाने वाला दुर्गुण काम , क्रोध आदि विकार ही तमोगुण हैं अतः साधक को भजन के द्वारा तमोगुणो के विकारों को नष्ट कर देना चाहिए। लंकिनी रजोगुण माया हैं व्यक्ति का आहार तथा भोग वासना से जुड़ी हुई वृष्टियाँ तमोगुण से उत्पन्न होती हैं। हनुमान जी उसे अधमरा कर देते हैं अतः साधक को अपने आहार तथा भोग वासना आदि को पूरी तरह से नियंत्रित करके जीवन जीना चाहिये। सतोगुण को अपनाकर तमोगुण का विनाश करके ही भक्ति रूपा भगवती सीता की कृपा हो सकती हैं। कथा श्रवण करने वालों में मानस मंजरी विभा उपाध्याय, कैलाश यादव, राधेश्याम , विनोद आदि थे।
रिपोर्ट – सुशील कुमार गुप्ता