जमानिया(गाजीपुर)। राम जानकी मंदिर बेटाबर के प्रांगण में चल रहे श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में महामंडलेश्वर शिवराम दास फलाहारी बाबा ने कहा कि भक्ति युक्त कर्मकांड तत्काल फल देता है।
बिना भाव का परमात्मा प्रसन्न नहीं होता प्रायः देखा गया है कि अभाव में ही भाव मिलता है। दीन हीन गरीब के पास जो भाव श्रद्धा समर्पण मिलता है और जगह उतना नहीं मिल पाता। भक्ति समस्त साधनों में सर्वोपरि है समग्र सत्ता के साथ समर्पण ही परमात्मा को प्रसन्न करता है। राजा बलि का प्रसंग सुनाते हुए फलारी बाबा ने कहा कि दान के साथ साथ अपने आप को यदि दानी भगवान के प्रति समर्पण कर दे तो उसका द्वारपाल भगवान और लक्ष्मी गुलाम बन जाती है बलि के यहां भगवान द्वारपाल और लक्ष्मी को झाड़ू लगाना पड़ा। धर्म के चार पैर सत् तप दया और दान है। सतयुग का अन्त मे सत्य ।त्रेता के अन्त मे तप और द्वापर के अंत आते-आते अभिमन्यु वध के समय दया भी समाप्त हो गई। कलिकाल में धर्म केवल दान पर टिका हुआ है। दान ही कल्याण करता है गाय ब्राह्मण गरीबों की सेवा से सब कुछ प्राप्त हो सकता है।
परोपकार परमार्थ अहंकार रहित होना चाहिए। अहंकार से किया हुआ जप तप पूजा पाठ परमात्मा के पास विलंब से पहुंचता है किंतु शरणागति के घाट पर बैठकर समग्र सत्ता के साथ समर्पित करते हुए भाव के द्वारा जो भी सामग्री हम परमात्मा के प्रति अर्पित करते हैं वह तत्काल पहुंचता है और परमात्मा भी तत्काल फल के रूप में वापस करता है। भगवान के नाम का उच्चारण और सत्य का आचरण ही भव रूपी सागर को पार करेगा। प्रथम संस्कार मॉ के गर्भ मे दुसरा संस्कार पालने मे पड़ता है जो अमिट होता है कयाधु के गर्भ मे प्रह्लाद भगवद् भत्ति का पाठ और छत्रपतिा शिवाजी जीजाबाई के द्वारा झूले मे राष्ट्र भत्ति का पाठ पढे थे।जो जीवन पर्यन्त अचल अटल अडिग और अमिट रहा।आज छत्रपति शिवाजी नही होते तो हम हिन्दुओ के माथे पर चन्दन और कान्धे पर जनेऊ नही होता ।