मलसा (गाजीपुर)। दिव्य राधा माधव ट्रस्ट सब्बलपुर के प्रांगण में नित्य आयोजित होने वाले सत्संग में श्रीमद्भागवत कथा सुनाते हुए भागवताचार्य चंद्रेश महाराज ने कहा कि भगवान के क्रोध और कृपा में कोई अंतर नहीं है अर्थात जिसको अपनी गोद में बैठा कर स्नेह से माथे और शरीर पर कृपा रूप हाथ में फेरते एवं अश्रु से अभिसिंचित करते हैं तो भी अपना परमधाम देते हैं, जीव को मुक्त करते हैं तो रावण, कुम्भकरन को बाण से से यानी क्रोध से भी अपने परमधाम को ही भेजते हैं। यहां तक कि चरण स्पर्श कराकर ऋषि पत्नी अहिल्या को मुक्त कर दिया था भगवान ने।
समस्त श्रोताओं को विक्रम संवत २०८० की बधाई देते हुए महाराज जी ने कहा कि आज के दिन से ही हम सभी संकल्प करें कि अब तक हमारे जीवन में जो कुछ काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर रूपी बुराई थी उसे आज के बाद अपने जीवन से निकाल बाहर करेंगे और सतत प्रयास करेंगे कि यह बुराई फिर हमारे जीवन में न आने पावे। हम अपने, परिवार के साथ साथ समाज के कल्याण के लिए भी अपना तन, मन और धन लगाएंगे।