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हनुमान जी का जीवनवृत्त साधु संतों, भक्ति पथ के साधकों के लिए अनुकरणीय-भागवताचार्य चंद्रेश महाराज

मलसा (गाजीपुर)। सोनवल ग्राम स्थित हनुमान मंदिर परिसर में आयोजित सात दिवसीय संगीतमय रामकथा में हनुमान जयंती के अवसर पर कथा अमृत पान कराते हुए भागवताचार्य चंद्रेश महाराज ने हनुमान जी की महिमा सुनाते हुए कहा कि हनुमान जी का जीवन वृत्त आजकल के साधु संतों, भक्ति पथ के साधकों के लिए तो अनुकरणीय है ही, गृहस्थ आश्रम में रहने वालों विशेषकर युवाओं के लिए बहुत ही प्रेरणादाई है।

कठिन से कठिन परिस्थिति में भी अपने धैर्य को न खोना, कार्य के संपादन हेतु अपने सम्पूर्ण सामर्थ्य का सुनियोजित तरीके से उपयोग करने की कला हनुमान जी से सीखने योग्य है। सीताजी की खोज में जब जामवंत,अगंद,नल- नील इत्यादि के साथ जब हनुमान जी वन पर्वत में विचरण कर रहे थे तब प्यास के सभी के मरने की नौबत आ गई थी। सभी निराश और हताश होकर अब जीवन की आशा छोड़ चुके थे तो हनुमान जी ने विवेक का आश्रय लेकर बहुत ऊंचे स्थान पर चढ़कर देखा तो एक गुफा में से बहुत से जल पक्षी अंदर बाहर आ जा रहे थे। हनुमान जी ने समझ लिया कि इस तरफ जरूर कोई ना कोई जलाशय है तभी यह जलपक्षी यहां दिखाई दे रहे हैं। सभी को लेकर हनुमानजी उधर ही पहुंचे तो सचमुच स्वच्छ सरोवर और सुमधुर रसीले फल के पौधे भी दिखाई पड़ा। यह प्रसंग शिक्षा देता है कि परिस्थिति चाहे जितना भी कठिन क्यों न हो यदि धैर्य और विवेक का आश्रय लिया जाए तो कोई न कोई समाधान अवश्य मिलता है।जब सुरसा ,सिंहिका और लंकिनी जैसी सात्विक, तामसी और राजसी प्रवृत्ति की ताकतों ने भक्ति रूपी सीता की खोज के समय हनुमान जी की यात्रा में बाधा उत्पन्न किया तो उनके साथ यथायोग्य व्यवहार करके लंका में जाकर सीताजी का पता लगाया।बल बुद्धि के भंडार होने के बावजूद अपने से बुजुर्ग और अनुभवी जामवंत जी के सलाह को मानकर कार्य संपादन करने से यह शिक्षा देते हैं हनुमान जी कि हे युवाओं जोश तो ठीक है लेकिन वह अपने माता पिता, गुरू और समाज के अनुभवी लोगों के सलाह और सहमति के अधीन यानी होश के अधीन ही रहे तो ही उत्तम रहेगा। हनुमान जी के सम्पूर्ण जीवन को यदि हम देखते हैं तो उनका प्रत्येक क्रिया कलाप शिक्षा प्रद है।