मलसा (गाजीपुर)। क्षेत्र के सबलपुर गांव में चल रहे भागवत कथा में पंडित चंद्रेश महाराज ने कहा कि किसी भी कार्य को संपन्न करने के लिए तीन शब्द आवश्यक है।
पहला संकल्प दूसरा क्रियान्वित करने की क्षमता और तीसरा परमात्मा की कृपा संकल्प अचल अटल और अडिग होना चाहिए। भगवान शिव और प्रभु श्री राम जैसा दृढ़ संकल्प हो संकल्प ही शक्ति है किसी भी सम या विषम परिस्थिति में दृढ़ संकल्प चलायमान और ढोला यमान नहीं होना चाहिए। अब केवल संकल्प ले लेने मात्र से कार्य की पूर्णता नहीं हो पाएगी दूसरा सोपान कर्म है मनुष्य को कर्मशील रहना चाहिए। कर्म के अनुसार ही जीव को फल मिलता है। कर्म यदि अच्छा होगा तो फल निश्चित ही अच्छा होगा यज्ञ की महिमा बताते हुए कहा कि प्राचीन संस्कृति को एक शब्द में समेटकर कहे तो उसका नाम यज्ञ है यज्ञ से वायुमंडल और पर्यावरण में भी शुद्धता आती है। संक्रामक रोग नष्ट होते हैं सह बंधुत्व की सद्भावना का विकास होता है। यज्ञ की पहचान अग्नि है, अग्नि शक्ति ऊर्जा और सदा ऊपर उठने की प्रेरणा देती है। अग्नि में ताप और भाप दोनों छुपा होता है। अग्नि से जल का भी निर्माण होता है अतः हम कह सकते है कि जल की वृद्धि और पर्यावरण की शुद्धि मे भी यज्ञ का योगदान है। यज्ञ में जलती हुई अग्नि ईश्वर है, अग्नि का मुख ईश्वर का मुख है। अग्नि में हवन करना सही मायने में ब्रह्म भोज करना है। औषधियों से बने हुए सामग्री के हवन से पर्यावरण भी शुद्ध होता है। संक्रामक रोग भी नष्ट होते हैं। शास्त्र सम्मत सामाजिक कल्याण और मानव उत्थान के कार्यों पर परमात्मा की कृपा अनवरत बरसती रहती है परमार्थिक कार्य की सफलता भी निश्चित है ।