Skip to content

अहंकार के विनाश से ही मनुष्य का कल्याण संभव है-पंडित चंद्रेश महाराज

मतसा (गाजीपुर)। क्षेत्र स्थित भगीरथपुर में एक दिवसीय मानस सत्संग में पंडित चंद्रेश महाराज ने कहा कि अहंकार के विनाश से ही मनुष्य का कल्याण संभव है। जब हम सब कर्म रूपी ध्यान लगाते हैं तब प्रशंसा का पानी बरसता है। अहंकार की घास बढ़ती है, विवेक की खूरपी से जब हम अहंकार की घास को बाहर निकालते हैं तभी सत्कर्म का ध्यान बच पाता है।

रामचरित मानस में स्वयंप्रभा सबरी और सीता जी खिलाती है जबकि सुरसा लंकिनी खाने का प्रयास करती है। कोई भी काम जब हम करते हैं तो हमें पुरुषार्थ को आगे विश्वास को पीछे बनाए रहना चाहिए सदूर्ण सदिचार बीच में होना चाहिए। शांति रूपी सीता को पानी के लिए पुरुषार्थ रूपी अंगद आगे हो विश्वास रूपी हनुमान जी बीच में हो सदूरू सदिचार रूपी बंदर साथ में हो तभी भक्ति और शांति रूपी सीता प्राप्त होती है। आज सोफा सेट बेडशीट टीवी सेट तो है किंतु दिमाग अपसेट है। जब हम सत्संग में समय देगी तो जीवन का तनाव समाप्त होगा। बडो़ के प्रति समर्पण छोटो का संरक्षण एव आत्म निरीक्षण करना चाहिए जब हमारे जीवन में प्रपंच का विस्मरण होगा। भगवत स्मरण होगा सदूर्ण महात्मा की शरण होगी तो निश्चय ही मरण मंगल होगा कहा की राम पशुता में भी मानवता लाते हैं। सभी बंदर भालू को मानवता की शिक्षा दे देते हैं जबकि रावण मनुष्य को भी पशु बनाना चाहता है। जय श्री राम सीता की रक्षा करने वाले जटायु को अपने गोद में रखकर उद्धार कर देते हैं। रामचरितमानस में समाज के सभी वर्गो का कल्याण एवं जीवन की समस्याओं का समाधान है।