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विद्वान सरस हो, विनय युक्त हो-बलराम दास त्यागी महाराज

मलसा (गाजीपुर)। भगीरथपुर स्थित झारखंडे महादेव मंदिर परिसर में आयोजित अधिकमास पर्यंत चलने वाली कथा के विश्राम दिवस तीसवें दिन श्रीमद्भागवत कथा सुनाते हुए बलराम दास त्यागी महाराज ने कहा कि विद्या होना बहुत अच्छी बात है और उससे भी अधिक अच्छी बात यह है कि विद्वान सरस हो, विनय युक्त हो।

यदि विद्वान विनय युक्त नहीं है, शीलवान नहीं है तो वह मानवता, देवत्त्व से पतनोन्मुखी होकर राक्षसी आचार विचार वाला ही कहा जाएगा। रावण भी बहुत विद्वान था परन्तु शीलवान नहीं था, सरस नहीं था तो विश्व विदित निशाचर के तौर पर उसकी गाथा आज भी प्रचलित है। उद्धव जी ने भगवान को यशोदा मैया, नंद बाबा और गोपियों के लिए उदास देखा तो कहे कि मैं जाकर वृंदावन में ग्वाल बाल, गोपियों और मैया यशोदा नंद बाबा को दूंगा कि आप लोग जिसके लिए आंसू बहा रहे हैं वह ठीक नहीं है,आप लोग निर्गुण, निराकार ब्रह्म को भजिए, वही वास्तव में मुक्तिदाता है। गोपियों ने जबाव दिया कि हे उद्धव! मन तो हमारे पास एक ही है और उसमें वह कान्हा,उसकी लीला इस बार प्रकार घुसे बैठें हैं कि निकलने का नाम ही नहीं ले रहे।दूसरा मन हो तब न तुम्हारे निर्गुण निराकार ब्रह्म का भजन करें,मन तो एक ही है और वह चित्त चोर चुरा ले गया। आज तीस दिवसीय कथा के विश्राम दिवस पर समस्त कथावाचकों को पुष्पहार एवं अंगवस्त्र से सम्मानित किया गया तथा समस्त ग्रामवासियों की तरफ से श्रोताओं एवं कथावाचकों के प्रति आयोजन समिति ने आभार प्रकट किया। आरती उपरांत सैकड़ों श्रोताओं में प्रसाद वितरण किया गया।